________________
-
७४४
भगवतोसूत्र तदेव निरवशेषं यावदानुपूर्व्या कालं गतः इदश्च तस्याचारभाण्डकम् १ भदंत इति भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्तित्वा एवमवादी-एवं खलु देवानुप्रियाणामन्तेवासी स्कन्दको नामानगारः कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गतः कुत्रोत्पन्नः गौतम इति श्रमणो भगवान महावीरो भगवन्तं गौत. ममेवमवादीत् एवं खलु गौतम ! ममान्तेवासी स्कंदको नामानगारः प्रकृतिभद्रका (विउलं पव्वयं तं चेव निरवसेसं जाव आणुपुव्वीए कालं गए ) विपुल पर्वतपर गये थे-(यहाँ सब अवशिष्ट कथन जैसा पहिले लिखा जाचुका है समझ लेना चाहिये ) अब वे स्कन्दक अनगार क्रमशःकालधर्म को प्राप्त हो चुके हैं ( इमेय से आयारभंडए ) ये उनके आचारभाण्डक -उपकरण हैं । इतने में (भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर वदह नमसइ) हे भदन्त ! ऐसा कहकर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की, नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता) वन्दना नमस्कार कर ( एवं वयासी) फिर प्रभु से उन्हों ने इस प्रकार पूछा एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी खंदए णामं अणगारे कालमासे कालं किच्चा कहिंगए, कहिं उववन्ने ) हे भदन्त ! आप देवानुपिय के शिष्य स्कन्दक नामके अनगार काल अवसर में काल करके कहां गये हैं ? कहां उत्पन्न हुए हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! इस प्रकार संबोधित करके (समणे भगवं महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर ने ( भगवं गोयम एवं वसी) भगवान गौतम से इस प्रकार कहा (अम्हेहिं सद्धि ) समारी साये । विउल पव्यय त चेव निरवसेस जाव आणुपुवीए काल गए ) विधुमाया पर्वत ५२ गया ता. ( म समस्त ४थन આગળ લખ્યા પ્રમાણે સમજવું ) તે સ્કન્દક અણગાર ક્રમશઃ કાળધર્મ પામ્યા छ ( इमे य से आयारभंडए ) मा तेमनi पात्र, १२ मा ७५४२४ो छे. त्यारे (भंते ति भगवं गोयमे समणं भगवौं महावीर वंदइ नमसर) भगवान ગૌતમે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર ને “હે ભદન્ત !” એવું સંબોધન કરીને पण नभ४२ . (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी ) |नभ२॥२ ४शन तेभो मडावी२ प्रभुने २ प्रमाणे प्रश्न ५७ये। (एव खलु देवाणुपियाणं अंतेवासी खंदए णाम अणगारे कालमासे काल किच्चा कहिं गए, कहिं उबवन्ने ?) હે ભદન્ત ! આપ દેવાનુપ્રિયના શિષ્ય સ્કદક નામના અણગાર કાળ અવસરે કાળધર્મ પામીને કયાં ગયા છે ? કયાં ઉત્પન્ન થયા છે ? ( એટલે કે કઈ आतिभा या छ ) ( गोयमा ! ) " गौतम !" से प्रभारी साधन प्रशन (समणे भगव महावीरे ) श्रम सगवान महावीरे (भगव गोयमं एवं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨