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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटोका श०१२०६ सू०४ लोकालोकादिपूर्वपश्चात्त्वे रोहानगारप्र० ६१ नेयव्वं' एवमुपरितनम् एकैकं संयोजयता यो योऽधस्तनस्तं तं छईयता ज्ञातव्यम् , एवं पूर्वोक्तक्रमणोपरितनमेकैकं संयोजयन् अधस्तनं पूर्वप्रोक्तमेकैकं च परित्यजन् पूर्ववदेव सर्व ज्ञातव्यम् । कियत्पर्यन्तमित्याह-जाव अतीयअणागयद्धा पच्छा सम्बद्धा' यावदतीतानागताद्धा पश्चात्सर्वाद्धा, घनोदधित आरभ्य अतीतादाऽनागवाद्धापर्यन्तं, पश्चात् तदनन्तरं सर्वाद्धति सर्वाद्धापर्यन्तं सर्व प्रश्नोत्तरं स्वयमूहनीयमिति, कियदवधीत्याह-'जाव अणाणुपुवी एसा रोहा !' यावत् अनानुपूर्वी एषा रोह ! यावत्पदेन उत्तरपक्षे 'पुचि पेते पच्छापेते दोवि एए सासया भावा' इति संयोजनीयम्। हे रोह! पूर्वमप्येतौ पश्चादप्येतौ द्वावप्येतौ शाश्वतौ भावौ एषाऽतेणं नेयव्यं) इस तरह ऊपर के अर्थात् आगे२ के एक एक पद को जोड़कर और जो जो नीचे के पद हैं अर्थात् पीछे२ के पद हैं उन्हें छोड़कर पहिले की तरह से ही सब प्रश्नोत्तर जानना चाहिये। कहां तक जानना चाहिये इस के लिये सूत्रकार कहते हैं कि (जाव अतीताणागयद्धा सव्वद्धा) यावत् अतीत अनागत काल तक और पश्चात् सर्वाद्धा तक (जाव अणाणुपुवी एसा रोहा) यावत् हे रोह ! यहां किसी भी प्रकार का क्रम नहीं है । तात्पय कहने का यह है कि घनो. दधि से लेकर अतीत अनागताद्धा तक, पश्चात् सर्वाधा तक सब प्रश्न और उत्तर अपने आप ही पहिले की तरह से बना कर समाधानयुक्त कर लेना चाहिये। "जाव अणाणुपुब्बी एसा रोहा" में जो यावत् पद रखा है उससे सूत्रकार इस बात को सूचना देते हैं कि उत्तरपक्ष में जो " पुन्धि पेते पच्छापेते, दुवे सासया भावा" पहिले ऐसा कहा गया है सो આ રીતે જ આગળ આવતાં પ્રત્યેક પદને જોડીને અને પાછળ આવી ગયેલાં પદોને છેડીને પહેલાં બતાવ્યા પ્રમાણે જ પ્રશ્નોત્તર બનાવવા જોઈએ. જ્યાં સુધી આ प्रमाणे प्रश्नोत्तर मनावा ? तो सूत्रा२ ४ छ ॐ (जाव अतीताणागयद्धा सव्वद्धा ) २मतीत २ind m सुधी भने छेक्ट सादा सुधी मा प्रमाणे ४२. ( जाव अणाणुपुव्वी एसा रोहा!) शेड ! ते थामा ४ ५ प्रारने કમ નથી. તે અનાનુપૂર્વી છે ત્યાં સુધી પણ ઉપર મુજબ કહેવું. તાત્પર્ય એ છે કે ઘનેદધિથી લઈને અતીત અનાગત અદ્ધા સુધી અને છેવટે સર્વોદ્ધા સુધી તમામ પ્રશ્નો અને ઉત્તર પહેલાં પ્રમાણે જ જાતે બનાવી લેવા જોઈએ. (जाव अणाणुपुव्वी एसा रोहा !) से पायना यावतू (५यन्त) ५४ 43 सूत्र १२ मे सूयन रे छ उत्तरपक्षमा "पुब्धि पेते पच्छा पेते. दोवि एए सासया भावा" युं छे (ते मने पडसा पशु छ भने पछी ५५ छ. ते नाव शाश्वत શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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