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भगवती सूत्रे वीरस्स तहारुवाणं थेराणं अंतिए समाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिजित्ता बहुपुडिपुण्णाई दुवालसवालाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सहिं भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता, आलोइय पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुव्वी कालं गए ॥ सू० १६ ॥
छाया-ततः खलु स स्कन्दको नगारः श्रमणेन भगवता महावीरेणाभ्यनुज्ञातः सन् हृष्टस्तुष्ट यावहृदय उत्थया उत्तिष्ठति उत्थाय श्रमण भगवन्तं महावीरं त्रित्व आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति ( कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्थित्वा स्वयमेव पञ्च महाव्रतान्यारोपयति) आरोप श्रमणांथ श्रमणीश्च क्षमयति क्षमयित्वा तथारूपैः
भगवान् तथंकर के द्वारा। संधारा के विषय में आज्ञा प्राप्त कर स्कन्दक अनगार ने क्या किया-सो कहते हैं- (तरणं से) इत्यादि ।
सूत्रार्थ - (तणं) इस के बाद ( से खंदए अनगारे ) वे स्कन्दक अनगार ( भगवा महावीरेणं) भगवान् महवीर से ( अब्भणुन्नाए समाणे) अनुमति प्राप्त कर (हट्टनुदु जाव हियए) बहुत अधिक हर्षित हुए, बहुत अधिक संतोष संपन्न हुए यावत् बहुत अधिक विकसित हृदयवाले हुए ( उट्ठाए उडेइ) बाद में वे अपनी उत्थानशक्ति से उठे ( उता समण भगवं महावीरं ) उठकर उन्हों ने श्रमण भगवान् महावीर को ( तिक्खुत्तो आग्राहिणपयाहिणं करेइ करिता वंद - नमसह ) प्रदक्षिणा पूर्वक वंदन किया नमस्कार किया ( वंदिता नमंसि ता) वंदना नमस्कार करके (सयमेव) अपने आप फिर उन्हों ने ( पंच તીર્થંકર ભગવાન પાસેથી સંથારા કરવાની અનુજ્ઞા પ્રાપ્ત કરીને સ્કન્દક અણુगारे शुं ते सूत्रार डे छे-" तरणं से" इत्यादि ।
सूत्रार्थ - ( तणं ) त्यार माह ( से खंदर अणगारे " ते २४४४ - गार ( भगवया महावीरेणं) भगवान महावीरनी ( अम्भणुन्नाए समाणे ) अनु भति भेजवीने ( हट्ट तुट्ठ जाब हियए) अतिशय दुर्ष पाभ्या, अतिशय संतुष्ट थया अने तेमनुं हृदय प्रमुदित थयुं ( उट्ठाए उट्टेइ) पछी तेथे तेमनी उत्थान शक्तिथी उउया. ( उद्वित्ता समणं भगव' महावीर ) ठीने तेभणे श्रभाशु भगवान भडावीरने ( तिक्खुतो आयाहिणपयाहिण करेइ करिता वंदइ नमसइ ) પ્રદક્ષિણા પૂર્ણાંક વંદ્યણા કરી नमस्कार अर्था ( वंदित्ता नमसित्ता ) नमस्कार इरीने ( सयमेत्र ) पोतानी लते ४ ( पंचमहव्व
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨