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भगवती सूत्रे
' एवं संपेहे ' एवं संप्रेक्षते एवं पूर्वोक्तप्रकारेण संप्रेक्षते विचारयति 'संपे हित्ता ' संप्रेक्ष्य पूर्वोक्तप्रकारेण विचार्य ' कल्लं पाउप्पभाए रयगीए ' कल्यं प्रादुष्प्रभातायां रजन्याम् - प्रकाशयुक्तप्रभातमायायां रात्रौ जाव जलते ' यावत् ज्वलित अत्र यावत् पदेन रक्ताशोकपकाशे किंशुकशुकमुखगुंजधिरागसदृशे कमलाकरषण्ड बोध उत्थिते सूर्ये सहस्ररश्मौ दिनकरे ' जेणेत्र समणे भगवं महावीरे ' यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः ' तेणेव ' तत्रैव 'जाव पज्जुवासह ' अत्र यावत् पदेन वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्थित्वा शुश्रूपया विनयेन प्राञ्जलिपुटः त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते ।
स्कन्दकपर्युपासनाकाले भगवान् यत्कथयति तदाह - खंदयाइ ' इत्यादिया ' स्कन्द इति हे स्कन्दक इति एवं रूपेण संबोध्य 'समणे भगवं महावीरे ' श्रमणो भगवान् महावीरः ' खंदयं अणगारं एवं वयासी ' स्कन्दकनिश्चय करके (संपे ) ऐसा पूर्वोक्त रूप से विचार किया ( संपेहित्ता ) ऐसा विचार करके ( कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए ) वे आगामी दिवस में जब कि रजनी प्रभात प्राय हो रही थी ( जाव जलते ) यावत् सूर्य अपने तेज से चमक ने लग गयाथा उस समय ( जेणेव समणे भगवं महावीरेतेणेव जाव पज्जुवासह) जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां आये वहां आकर उन्हों ने याबद उनकी पर्युपासना की ।
स्कन्दक अनगार जब भगवान् की पर्युपासना करने में लगे हुए थे उस समय भगवान ने जो उनसे कहा उसे प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं - (समणे भगवं महावीरे ) श्रमण भगवान महावीर ने उस समय उनको (खंदयाइ ) हे स्कन्दक ! इस रूप से संबोधित करते हुए ( खंदयं अणगारं ) उन स्कन्दक अनगार को ( एवं वयासी ) इस प्रकार कहा
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२४-४४ अणुगारे भनभां मे प्रमाणे निश्चय उरीने " संबहेइ " यूर्वेति स - ૯૫ કર્યાં ૮ संपेहित्ता " येवो सदय उरीने " कल्ले पाउपभायाए रयणीए " ખીજે દિવસે જ્યારે રાત્રિ પસાર થઇ અને પ્રાતઃ કાળ થયા, जाव जलंते " न्यारे सूर्य पोताना अाश साववा साग्यो त्यारे " जेणेव भगत्र महावीरे तेणेव जाव पज्जुवासइ ” તેઓ ત્યાં ભગવાન મહાવીર પ્રભુ વિરાજમાન હતા ત્યાં ગયા. અને ત્યાં જઇને નમસ્કારથી પર્યું`પાસના પન્તની વિધિ કરી.
સ્કન્દ્વક અણુગાર જ્યારે ભગવાનની પ`પાસના કરી રહ્યા હતા ત્યારે ભગવાને તેમને જે વચને उद्या ते सूत्रार प्र८ उरे छे- “ समणे भगवं महावीरे " શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે ત્યારે खंदवाइ ' " हे सुन्छ ! मे સેં ખાધન કરીને खंदय अणगार २४-६४ अणुगारने “ एव' बयासी "
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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