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भगवतोसत्र 'समणं भगवं महावीरं ' श्रमणं भगवन्तं महावीरं, वंदित्ता नमंसित्तो जाव पज्जुवासित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा यावत् शुश्रूषया विनयेन पर्युपास्य ' समणे णं भगवया महावीरे णं ' श्रमणेन भगवता महावीरेण ' अब्भणुनाए ' अभ्यनुज्ञातः आज्ञप्तः सन् 'सयमेव पंचमहन्वयाणि आरोवेत्ता' स्वयमेव पंचमहाव्रतानि आरोप्य भगवंतो महावीरस्याज्ञामादाय पुनः स्वयमेव पंचमहावतानि स्वीकृ. स्वेत्यर्थः 'समणा य समणीओ य खामेत्ता' श्रमणांश्च श्रमणीश्च क्षमयित्वा 'तहारूवेहिं थेरेहिं कडाइहिं सद्धि' तथारूपैः स्थविरैः कृतादिभिः संस्तारक संस्थितस्य रक्षकैः सार्धम् — विपुलं पव्वयं सणियं सणियं दुरुहित्ता' विपुलं तदाख्यं पर्वतं शनैः शनै मन्दगत्या दूरुह्य अधिरुह्य · मेघघणसंनिगासं' मेघधन संनिकाशं घनमेघसदृशं सान्द्रजलदसमानं कृष्णवर्णमित्यर्थः । देवसंनिवार्य' श्रमण भगवान् महावीर को वंदन करके 'नमंसित्ता नमस्कार करके 'जाव पज्जुवासित्ता' यावत् शुश्रूषाद्वारा-विनयद्वारा उनकी पर्युपासना करके 'समणेणं भगवया महावीरेणं 'उन श्रमण भगवान महावीर से पादपोपगमन संथारा धारण करने की अनुमति मांगू 'अन्भणुनाए' जब वे इसे धरण करने की मुझे अपनो अनुमति दे देंगे तब मैं 'सयमेव पंच महव्वयाइं आरोवेत्ता" अपने आप पांच महाव्रतों को स्वीकार करके (समणाय समणीओ य खामेत्ता) श्रमण और श्रमणीओं से क्षमापन (खमतखामाणा) करके (तहारूवेहिं थेरेहिं सद्धिं ) फिर मैं तथारूप स्थ. विरों के साथ कि जो (कडाइहिं ) संस्तारक में स्थित मुनि के सहायक होते हैं, उनके साथ (विउलं पव्वयं) विपुलाचल-पर्वत पर ( सणियंसणियं) धीरे २ चहूं (दुरुहित्ता) चढकर फिर मैं (पुढवीसिलापट्टयं) ऐसे पृथिविसिलापट्टक कि जो (मेहघणसंणिगासं ) काले मेघ के पारने वय! ४शन “ नमसित्ता" नभ२४.२ ४शने “ जाव पज्जुवासित्ता " भने सेवा शुश्रूषा बारा-विनय द्वारा तेमनी ५युपासना ४शने “ समणेणं भगवया महावीरेणं" त श्रम भगवान महावीर पासे पाहपोशमन सथा ३२वानी. २० भा०. " अब्भणुनाए" तेम ते भाट अनुमति मापे तो "सयमेव पंच महव्वयाइं आरोवेत्ता" मारीन पांय महावतो मी शन "समणा य समणीओय खामेत्ता" साधु तथा सानासाना साथे क्षमापन। शन “ सहारूवेहिं थेरेहिं सद्धि कडाइहिं " सथा। ४२ना२। साधुने साय३५ थाय मेवा स्थविशनी साथे " विउलं पव्वय" विYसाय पर्वत ५२ " सणिय सणिय दुरुहिता" धीमे धीमे यढी२३. " पुढीमिलापट्टय मेघणसंणिगासं देवसंनि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨