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भगवतीसूत्रे
मितिकृत्वा एवं संप्रेक्षते संप्रेक्ष्य कल्यं प्रादुष्प्रभातायां रजन्यां यावत् ज्वलति यौव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैव यावत्पर्युपास्ते । स्कन्दक इति श्रमणो भगवान् महावीरः स्कन्दकमनगारमेवमवादीत् तद् नूनं तव स्कन्दक ! पूर्वरात्रापररात्र कालसमये धर्मजागरिकां जाग्रतोऽयमेतद्रपआध्यात्मिको यावत् समुदपद्यत, एवं खल्वहमने नैतद्रूपेण तपसोदारेण विपुलेन तदेव यावत्कालमनवकांक्षतो
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मै अपने मरण की आशंका- इच्छा नहीं करूँगा । ( तिकट्टु ) इस प्रकार की भावना से प्रेरित होकर उन स्कन्दक अनगार ने ( एवं संपेहेह ) ऐसा विचार किया । ( संपेहित्ता ) इस प्रकार विचार कर के कल्लं पापभाषाए रयणी जाव जलते ) जय प्रातःकाल हुआ यावत् सूर्य का प्रकाश फैल चुका तब वे स्कन्दक अनगार ( जेणेव समणे भगवं महावीरे ) जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे ( तेणेव जाव पज्जुवासह ) वहां आये । यावत् उनकी वे पर्युपासना करने लगे । (खंद्याइ समणे भगव महावीरे खंदयं अणगारं एवं व्यासी) हे स्कन्दक ! इस प्रकार संबोधित करते हुए श्रमण भगवान महावीर ने स्कन्दक अनगार से ऐसा कहा - ( से पूर्ण खंदया पुव्वरस्ताव रक्तकाल समयंसि ) हेस्कन्दक रात्री के पिछले प्रहर में ( धम्मजागरिथं जागरमाणस्स ) धर्मजागरणा करते हुए तुम्हें (इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था ) यह इस प्रकार का आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि ( एवं
भरणुनी माांक्षा नहीं ४३ ( त्ति क) आा अारनी लावनाथी प्रेरार्ध २४६४ गुगारे ( एवं संपद्देइ ) ५२ भाव्या प्रमाये समुदय 5. ( संपेहित्ता ) था अारने संप उरीने ( कल्लं पाउलमायाए रमणीए जाव जलते ) જ્યારે પ્રાઃતકાળ થયા, જ્યારે સૂર્યને પ્રકાશ ફેલાયા–અહીં સૂર્યના પ્રકાશ ફેલાયા ત્યાં સુધીનું કથન ઉપર મુજબ ગ્રહણ કરવાનું છે-ત્યારે સ્કન્દ્વક અણુ२ ( जेणेव समणे भगव महावीरे ) नयां श्रभक्षु भगवान महावीर विरान्ता हता (ते जाव पज्जुवासह ) त्यां याव्या. त्यां भावीने वहाथी पर्युपासना पर्यन्तनी डिया री ( खंड्याइ भ्रमणे भगवं महावीरे खदयं अणगार एवं वयासी) त्यारे श्रमय लगवान महावीरे २४४४ अगुगारने या प्रमाणे धुं ६४ ! ( से णूणं खंद्या पुत्ररत्तावरत का समयंसि ) रात्रिना छेदना अडुरे ( धम्मजागरिय जागरमाणस्स ) धर्मनगर आरती वाते तमने ( इमेयारूवे अज्झथिए जव समुज्जित्था ) मा प्रहारनो आध्यात्मिक, मनोगत सहय उत्पन्न थयो छे ( एवं खलु अह इमेणं पयारुवेणं तवेणं ओरालेणं विउले
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨