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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ ० १ सू. १५ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६९३ पइविंशतितमेन द्वादशद्वादशोपवासेन "तेरसमं मास अट्ठावीसइमं अट्ठावीसइमेण" त्रयोदशं मासमष्टाविंशतितमाष्टाविंशतितमेन, त्रयोदशत्रयोदशोपवासेन " चउद्दसमं मासं तीसइमं तीसइमेण " चतुर्दशं मासं त्रिंशत्तमत्रिंशत्तमेन, चतुर्दशचतुर्दशोपवासेन " पण्णरसमं मासं बत्तीसइमं बत्तीसइमेण " पंचदशमासं द्वात्रिंशत्तम द्वात्रिंशत्तमेन पंचदशपंचदशोपवासेन । “ सोलसमं मास चोत्तीसइमं चोत्तोसइमेणं" षोडशं मासं चतुस्त्रिंशत्तमचतुस्त्रिंशत्तमेन, षोडशषोडशोपासेन, "अणिरिखत्तेणं " अनिक्षिप्तेन निरन्तरकृतेन " तवोकम्मेणं " तपः कर्मणा की संख्या चोवीस आती है, पारणा के दिन दो होते हैं। "तेरसमं मासं अट्ठावीसइमं अट्ठावीसइमेणं" तेरहवे मास में तेरह-तेरह उपवास करके पारणा किया जाता है। इस महिने में तपस्या के दिनों की संख्या छाईस आती है, और दो दिन पारणा के होते हैं। '' चउद्दसमं मासं तीसइमं तीसइमेण" चौदहवें महिने मे चौदह-चौदह उपवास करके पारणा किया जाता है। इस महिने में तपस्या के दीनों की संख्या अट्ठा. ईस आती है, और पारणा के दो दिन होते हैं । " पण्णरसमं मासं षत्तीसइमं बत्तीसइमेणं " पन्द्रहवें महीने में पन्द्रह-पन्द्रह उपवास कर के पारणा किया जाता है। इस मास में तपस्या के दिनों की संख्या तीस ३० आती है, और पारणा के दो दिन होते हैं। “ सोलसमं मासं चोत्तीसइमं चोत्तीस इमेणं” सोलहवें मास में सोलह-सोलह उपवास करके पारणा किया जाता है। इस मास में तपस्या के दिनों की संख्या पत्तीस आती है, और पारणा के दिन दो होते हैं। इन सब उपवासों को " अणिक्खित्तेणं" निरन्तर-व्यवधान-रहित करना चाहिये। ऐसे शांना हिवस मे मा छ, ( तेरसम मास अट्ठावीसइम अट्टावीसइमेण) તેરમાં મહિનામાં તેર ઉપવાસને પારણે તેર ઉપવાસ કરવા જોઈએ આ માસમાં तपस्याना हिवसे। २६ ७०पीस मने पा२४ांना दिवस में भाव 2. ( चउहसम' मास'तीसइम तीसइमेण') यौहमा भडिने यो वासने पारणे यो उपवास १२वा પડે છે. આ મહિનામાં તપસ્યાના ૨૮અઠયાવીસ અને પારણાંના ૨ બે દિવસ આવે छे, (पण्णरसम मास बत्तीसइम बत्तीस इमेण ) ५४२मा भडिने ५४२ उपासने પારણે પંદર ઉપવાસ કરવા પડે છે, તે માસમાં તપસ્યાના ૩૦ તીસ અને પારણાના २ मे हिवसे आवे छे, ( सोलसम मास चोत्तीसइमं चोत्तीसइमेण) सोग મહિને સોળ ઉપરાને પારણે સેળ ઉપવાસ કરવા પડે છે, તે મહિનામાં તપस्यान। ३२मत्रीस भने पारणांनी २ हिवस मावे छे. ते या वास ( अणिदिखत्तण) निरंतर-मांतरे। पाय॥ विना ४२११ न. मा प्रारनी शुधरन શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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