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भगवतीसूत्रे स्वशरीरं तापयन् , तथा ' रत्ति' रात्री-रात्रिसमये 'वीरासणेणं ' वीरासनेन्= पूर्वोक्तप्रकारेण, तथा ' अवाउडेण' अपावृतेन=सदोरकमुखवस्त्रिकारजोहरणचोलपट्टकातिरिक्तवस्त्ररहितेन शरीरेण तिष्ठतीति ।।
‘एवं दोच्चं मास' एवं द्वितीयं मासम् एवम्=अनेनैव विधिना द्वितीयमासम् 'छटुं छटेणं ' षष्ठ षष्ठेन, विकद्विकोपवासेन । शेषं सर्वे प्रथममासवदेव विज्ञेयम् ' एवं तच्चं मासं अट्टमं अट्ठमे गं' एवं तृतीयं मासम् त्रिण्युपवासेन अष्टमाष्टमेन
जाती है । आतापना का अर्थ है सूर्य की धूप से अपने शरीर को तपाना इस तरहकी स्थिति संपन्न बनकर ये दिवस को व्यतीत करे और रात्रि में शरीर को खुला करके वीरासन से रहे । “अवाउडेण" जो ऐसा पद दिया है-सो इससे यह बात प्रकट की गई है कि उस साधु को सदोरकमुखवस्त्रिका, रजोहरण और घोलपट्टक इनके अतिरिक्त और वस्त्र अपने शरीर पर नहीं रखना चाहिये । “ एवं दोच्चं मासं" इसी तरह से द्वितीय मास को भी इसी पूर्वोक्त विधि के अनुसार उसे व्यतीत करना चाहिये-पर इस महिने में उसे दो दो उपवास करना चाहियेबाद में पारणा करना चाहिये-फिर दो उपवास करना चाहिये बाद में पारणा करना चाहिये । इस तरह वीस दिन तपस्या के होते हैं। और दस दिन परणा के होते हैं। " एवं तच्चं" इसी विधि के अनुसार तृतीय मास को भी समाप्त करना चाहिये । पर यहां " अट्ठमं अट्ठमे णं" तीन २ उपवास करके पारणा करना चाहिये। इस तरह इस मास में चौवीस दिन तपस्या के होते है और आठ दिन पारणा के होते है।
આ રીતે તે આ દિવસ વ્યતીત કરે છે અને રાત્રે શરીર ખૂલ્લું રાખીને वासन से छ. “ अवाउडेण" ५४ द्वार से शाम माव्यु આરાધક મુનિ દોરા સહિતની મુહપત્તિ, રજોહરણ અને ચલપટ્ટક સિવાય કે ५५ व ४५ पोताना शरी२५२ २जी शत। नथी. "एवं दोच्चं मास" भाले માસ પણ પૂર્વોક્ત વિધિ પ્રમાણે જ તેણે વ્યતીત કરવો પડે છે. પણ બીજા માસ દરમિયાન તેણે છઠ (બે ઉપવાસ) ને પારણે છઠ કરવા જોઈએ. આ शते पास हिवस ५पासना मने इस हिस पा२णांना आवे छे. “ एवं तच्चं" આ વિધિ પ્રમાણેજ ત્રીજે માસ પણ વ્યતીત કરવું જોઈએ. પણ ત્રીજા માસ દરમિયાન અઠ્ઠમને પારણે અઠ્ઠમ (ત્રણ ઉપવાસને પારણે ત્રણ ઉપવાસ) કરવા જોઈએ, આ રીતે ત્રીજે મહિને વીસ દિવસ તપસ્યાના અને આઠ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨