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________________ - - - - - - प्रमेयचन्द्रिका टोका श० २ उ० १ सू. १४ स्कन्दकचरितनिरूपणम् १७९ सर्व पूर्ववदेव । एतास्तिस्रः प्रथमा द्वितीया तृतीयेति शब्देन कथ्यन्ते । ता एवाहअष्टमी नवमी दशमी एतास्तिस्रोऽपि सप्त सप्त रात्रिन्दिवा संपाधा भवन्ति । " पदमं सत्तराईदियं ” इत्यादि । 'पह मं' प्रथमाम् तत्राष्टम्यां भिक्षुमतिमायां चतुविधाहारपरित्यागपूर्वक = अष्टम्यादिषु तिमषु प्रथमाम् = अष्टमीमित्यर्थः " सत्तराईदियं " सप्तवात्रिन्दिवां = सप्तहोरात्रसम्पाद्यां भिक्षु-प्रतिमामुपसम्पद्य स्कन्दको विहरतीति सम्बन्धः । ' एवम् 'दोच्च' द्वितीयां = नवमी मित्यर्थः । " सत्तराइंदियं" सप्तरात्रिन्दिवां = सप्ताहोरात्रसम्पाचाम् । . तच्चं " तृतीयां दशमीमित्यर्थः 'सप्तराइंदियं ' सप्तरात्रिन्दिवां सप्ताहोरात्रसम्पाद्यां और पानी की सात-सात दत्तियां होती हैं। बाकी का सब कथन पहिली प्रतिमा की तरह से इन प्रतिमाओं में भी जानना चाहिये ! इनके बाद आठवों भिक्षु प्रतिमा आती है सो यह (प्रथमा) इस शब्द से और नवमी प्रतिमा (द्वितीया ) शब्द से और दसवीं प्रतिमा (तृती. या) शब्द से कही जाती है। ये तीनों ही प्रतिमाएँ सात-सात दितगत के प्रमाणवाली होती हैं-अर्थात् इनके पालन करने का प्रमाण सातसात दिनरात का है। यही बात (पढम सत्तराईदियं ) इस पूत्रपाठ द्वारा समझाई गई है। अष्टमी-नवमीं और दशवीं इनमें से जो पहिली भिक्षु प्रतिमा है अर्थात्-आठवीं भिक्षु प्रतिमा है वह सात दिनरात में आराधित होती है । इस सात दिन रात की मर्यादावाली भिक्षु प्रतिमा को उन स्कन्दक अनगार ने धारण किया। इसी तरह द्वितीय प्रतिमा को अर्थात् नवमी भिक्षु प्रतिमा को कि जो सात दिनरात में आराधित અવધિવાળી સાતમી ભિક્ષુ પ્રતિમામાં આહાર અને પાણીની સાત સાત દક્તિ લેવાય છે. બાકીનું સમસ્ત કથન આ પ્રતિમાઓમાં પણ પહેલી પ્રતિમા પ્રમાણેજ सभा. त्या२ मा मामी भिक्षुप्रतिभा मावे छ. तने "प्रथमा " vथी सोमवाम मारे छ. नवभी प्रतिमाने " द्वितीया" श५४थी मने सभी प्रतिमान " तृतीया " शपथी माणमामा मात्र छ ते ३ प्रतिमामानी साराधना ४२वानी मयि सात सात निशतनी छ. मे०४ पात 'पढमं सत्तराइंदियं " सूत्र द्वारा सभामा मायेस छ. सभी नवमी मने सभी પ્રતિમાઓમાંથી જે પહેલી ભિક્ષુપ્રતિમા છે તેનું, એટલે કે આઠમી પ્રતિમાનું સાત દિનરાત આરાધન કરવું પડે છે. તે સાત દિનરાતની અવધિવાળી ભિક્ષુ પ્રતિમાનું પણ સ્કન્દક અણગારે આરાધન કર્યું. એ જ પ્રમાણે બીજી પ્રતિમા, એટલે કે નવમી ભિક્ષુ પ્રતિમા કે જેની આરાધના સાત દિનરાત કરવી પડે છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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