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________________ ६६८ भगवतीसरे टीका-'तएणं समणे भगवं महावीरे' ततः खलु श्रमगो भगवान् महावीरः " कयंगलाओ" कृतंगलातः नगरीतः " छत्तपलापयाओ चेश्याओ" छत्र पलाशकात् चैत्यात् छत्रपळाशकनामकोधानात् "पडिनिकायमइ” प्रतिनिष्क्रामति "पडिनिवग्वमित्ता बहिया जणवयनिहारं विहरइ" प्रतिनिष्क्रम्य बहिर्जनपदविहारं विहरति । " तएणं से खंदए अणगारे " ततः खलु स स्कन्दकोऽनगारः" तदनन्तर भगवतो महावीरस्य विहरणानन्तरम् स्कन्दकनामानगारः " समणस्स भगवओ महावीरस्स" श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य " तहारू पाणं थेराणं अंतिए" तथारूपाणां स्थविराणामति के समीपे "सामाइयमाइयाई एकारसअंगाई अहिज्जइ" जन्य प्रभाव से उनका आत्मबल विशेषरूप से उद्दीप्त था। अतः वे भस्म से ढकी हुई अग्नि की तरह से प्रकाशित थे । ( तवेणं तेएणं तवतेयसिरिए अईव अईव उवसोभेमाणे चिट्ठई ) इस सूत्रपाठ द्वारा यही बात प्रकट की गई है। अर्थात् वे तप से तेज से और तप तथा तेज की शोभा से बहुत बहुत शोभित थे। सू० १४ ।। टीकार्थ-(तएणं समणे भगवं महावीरे) इसके बाद श्रमग भगवान महावीर (कयंगलाओ नयरीओ) कृतंगला नगरी से (छत्तपलासयाओ चेड्याओ) छत्रपलाशक चैत्य-उद्यान से (पडिनिक्खमई) निकले। (पडिनिक्खमित्ता) निकलकर ( बहिया जणवयविहारं विहरइ ) याहर घे जनपद में विहार करने लगे । (तरण से खदए अणगारे ) भगवान महावीर के विहार के अनन्नर वे स्कन्दक अन गार (समगस्स भगवओ महावीरस्स ) श्रमण भगवान महावीर के (तहारूवाणं थेराण अंतिए) પણ તપના પ્રભાવથી તેમનું આત્મબળ વધારે પ્રદીપ્ત થયું હતું. તેથી તેઓ शमनी नीये येता मनिवासीप्यमान उता. (तवेण तेएण तवतेयसिंरीए अईव अईय उवसोभेमोणे चिद्रइ) म सूत्र 3 43 ७५२रीत पात પ્રકટ કરવામાં આવી છે. એટલે કે તેઓ તપથી અને તેજથી તથા તપના તેજથી અતિશય ભાયમાન લાગતા હતા. છે સૂ- ૧૪ टी---'' तएण समणे भगवं महावीरे” त्या२ मा श्रम समान भापी३ " कयंगल ओ नयरीओ " तसा नाना " छत्तपलासयाओ चेइ याओ" ७३५३।१४ चैत्यभाथी (40041) भांथी ( पडिनिक खमइ ) वि.२ ४ो. " पडिनिखमिता " त्यांथी विडा२ ४ीने “वहिया जणवयविहार विहरइ" सहारना प्रदेशमा विय२१॥ साया. “तएण से खंदए अणगारे" त्या२ माह २४.६४ मा२ “ तहारूवाण राण' अंतिए" तथा सरना स्थविशनी पासे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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