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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६४३ , त्यर्थः १ । ' भासासमिए - भाषासमितः- भाषण भाषा = कार्कश्यादिरहित हितमितस्फीतमृदुभाषणरूपा, तया समितः = युक्तः २ । भाषासमितिमानित्यर्थः ' सणासमिए ' एषणा समितः एषणा नवकोटिविशुद्ध भिक्षाग्रहणरूपा, सा चगवेषणा ग्रहणैषणा - परिभोगेपणादिभेदेन त्रिविधा भवति तथा समितः =सम्यगुपयोगयुक्तः, एषणा समितिमान् इत्यर्थः । ' आयाणभंडमत्त निक्खेवणासमिए' आदानभाण्डमात्र निक्षेपणा समितः, तत्र - आदानेन - ग्रहणेन सह भा - ण्डमात्रायाः = उपकरणसमूहरूपायाः यद्वा भाण्डस्य पात्रस्य मात्रस्य = वस्त्रादिरूपोपकरणस्य, यद्वा भाण्डमात्र योः - इतिच्छाया पक्षे भाण्डस्य या निक्षेपणा= - ई है। इस ईर्ष्या से जो समित हैं- अच्छी तरह से युक्त हैं - वे ईर्ष्या समित हैं । अर्थात् ईर्यासमिति वाले हैं । इस प्रकार की ईर्ष्या समिति वाले वे स्कन्दक अनगार हो गये । भासासमिए' कर्कशता आदि से रहित हित, मित, मृदु भाषण करना इस का नाम भाषा समिति है इस भाषा समिति से जो युक्त होते हैं वे भाषासमित कहलाते हैं । स्कन्दक अनगार इस भाषा समिति से युक्त बन गये। एसणासमिए' नवकोटि से विशुद्ध भिक्षा का ग्रहण करना इसका नाम एषणा है। यह एषणा - गवेषणा, ग्रहणैषणा और परिभोगेषणा आदि के भेद से तीन प्रकार की है। इस एषणा से जो युक्त होते हैं अर्थात् जो इस में अच्छी तरह से उपयोग रखते हैं वे एषणा समित हैं। वे स्कन्दक मुनि इस एषणा समिति से युक्त बन गये । ' आयाण भंडमत्तनिक्खेवणासमिए' उपकरण समूह रूप भांड मात्रा के ग्रहण करने में और उठाने में अथवा भांड पात्र एवं मात्र वस्त्रादिरूप उपकरणों के धरने में, उठाने હોય છે, તેને ઇર્યાસમિત અથવા ઇર્યાસમિત વાળા કહે છે. તે સ્કન્દક અણુગાર તે પ્રકારની ઇર્ષ્યાસમિતિ વાળા થઈ ગયા. भासासमिए) श પશુ વગેરે રહિત, હિત, મિત, મૃદુ વાણી ખેલનારને ભાષાસમિતિથી યુક્ત अहेवामां आवे छे. २४न्६४ आशुगार भाषासमितिथी पशु युक्त मन्या ( एसणासमिए) विशुद्ध लिक्षाने “ोषणा " हे छे. ते शेषणाना या प्रमाणे त्रशु अार छे - ( १ ) गरेषाया, (२) श्रनुषा, भने ( 3 ) परिक्षेोगेषथा. આ એષણાથી જે યુક્ત હાય છે એટલે કે તેનું જે ખરાખર પાલન કરે છે તેને એષણા સમિત કહે છે. કન્તક 'અણુગાર એષણા સમિતિથી યુક્ત ખની गया – ( आयाणभंङमत्त निक्खेवणासमिए ) लांड भेटले यात्र मने मात्र એટલે વસ્ત્રાદિ રૂપ ઉપકરણા, પાત્ર અને વસ્ત્રાદિ રૂપ ઉપકરણાને મૂકતી વખતે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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