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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू. ५३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६२५ भगवन्तं महावीर वन्दने नमस्यति “वंदित्ता नमंसित्ता" वन्दित्वा नमस्यित्वा " उत्तरपुरथिमं दिसिभायं अवक्कमइ” उत्तरपौरस्त्यं दिग्भागम् अवक्रामति " उत्तरपुरथिमं " उत्तरपौरस्त्यम् उत्तरपूर्वयोरन्तरालं " दिसिभायं " दिगभा. गम् ईशानकोणम् “ अवक्कमइ” अबक्रामति गच्छति "अवकमित्ता” अवक्रम्य स स्कन्दक ईशानकोणे गत्वेत्यर्थः, “तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओय एगंते एडेइ " त्रिदण्डं च कुंडिकां च यावत् धातुरक्ताश्चैकान्ते एडयति, त्रिदण्डादिकं संन्यासि सम्बन्धिसर्वमुपकरणं धातुरक्ताः शाटिकाश्च एकान्ते एडयति -मुश्चति, तापसस्य यानि चिन्हानि आसन् तानि सर्वाण्येव स्कन्दकः परित्यजति " एडित्ता" एडयित्वा परित्यज्य, सदोरकमुखवत्रिका-रजोहरण-चोलपट्टक " चद्दरादि " रूपं मुनिवेषं धृत्वा च " जेणेव समणे भगवं महावीरे" यत्रैव वैसा ही है 'इनिकटु' इस प्रकार कहकर उन स्कन्दक ने 'समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ ' श्रमण भगवान महावीर को वंदना की, उन्हें नमस्कार किया। 'वंदित्ता नमंसित्ता' वंदना नमस्कार कर चुकने बाद फिर वह 'उत्तरपुरस्थिमं दिसि भायं अवक्कमह ' उत्तर और पूर्व दिशा के अंतरालवी दिशा में-अर्थात् ईशानकोण में गये । ' अवक्कमित्ता' वहां जाकर उन्हों ने 'तिदंडं च, कुंडियं च, जाव धाउरत्ताओ एगंते एडेइ' अपने त्रिदण्ड को, कमण्डलु को, यावत् गैरिक आदि धातु से रंगे वस्त्रों को एकान्त में रख दिया। तात्पर्य कहने का यह है कि स्कन्दक ने अपने तापस संबंधी जितने भी चिह्नथे और उपकरणथे उन सबका परित्याग कर दिया । ' एडित्ता' उन्हें एकान्तस्थान में रखकर " सदो. रकमुखवस्त्रिका रजोहरण, चौलपट्टक, चद्दर आदिरूप मुनिवेष को धारण कर 'जेणेव समणे भगवं महावीरे ' जहां श्रमण भगवान महावीर २४४ “ समणं भगव महावीर वंदइ नमसइ" श्रम सपान महावीरने
न नभ२४२ घ्या. “वंदित्ता नमंसित्ता" न नभ२४१२ ४शन तया " उत्तरपुरस्थिमं दिसिभाय अवकमइ " उत्तर भने पूर्व शिनी परयन। भूगामा (शान भूमा) आया. ( अवक्कामित्ता ) त्यो भने भो "तिदंड च, कुंडियं च, जाव धाउरत्तोओ एगते एडेइ " तमना त्रि, भस ગરિક વગેરે ધાતુથી રંગેલાં વસ્ત્રો (ભગવાં કપડાં) વગેરે વસ્તુઓ એકાન્તમાં મૂકી દીધી. કહેવાનો ભાવાર્થ એ છે કે સ્કન્દકે પરિવ્રાજક તરીકેના જે જે थिही उता. तेना परित्याग थी. " एडित्ता" ते ॥धी १२तुमान अन्त સ્થાનમાં મૂકીને દેરા સહિત મુખવસ્ત્રિકા (મુહપત્તી,) રજોહરણ, ચોલપટ્ટક, पछी, वगैरे भनिवेष धा२१ ३शन " जेणेव समणे भगव महावीरे" यां
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨