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भगवतीसूत्रे श्रमणा भगवान् महावीरस्तत्रैवोपागच्छति उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं त्रिकृत्व आदक्षिणप्रदक्षिणां करोति कृत्वा वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवादीत् आदीप्तः खलु भदंत ! लोकः, प्रदीप्तः खलु भदंत ! लोकः, आदीप्तप्रदीप्तः खलु भदंत ! लोकः, जरया मरणेन च । तद् यथा नाम कश्चिद्गृहपतिरगारे ध्मायमाने यत् तत्र भाण्डं भवति अल्पभारमूल्यगुरुकं तद् गृहीत्वा आत्मना रखकर ( जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव- उवागच्छद) फिर वे जहां श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे वहां आये ( उवागच्छित्ता समणं भगवंत महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ नमसइ) वहाँ जाकर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को विधिपूर्वक वंदन नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता ) वंदना नमस्कार करके ( एवं वयासी) फिर उन्हों ने श्रमण, भगवान् महावीर से इस प्रकार कहा-(आलित्तेणं भंते ! लोए पलित्तेणं भंते ! लोए, आलित्तपलित्तणं भंते ! लोए ) हे भदन्त ! जरा
और मरण से यह लोक जला हुआ है । हे भदन्त यह लोक उन दोनों से बहुत अधिक जला हुआ है । हे भदन्त ! यह लोक जरा और मरण से चारों तरफ से आदीप्त प्रदीप्त-ज्वलित-प्रज्वलित हो रहा है, यहां दष्टान्त कहते हैं ( से जहाणामए केइ गाहावई आगारंसि झियायमाणं सि) जैसे कोई गृहस्थ अपने मकान के जलने पर अर्थात् मकान में आग लगने पर (जे ते तत्थ अप्पभारे मोल्लगुरुए भंडे भवइ ) जो सीधी, (एडित्ता ) ते १२तुमाने मेiतमा भूटीन ( जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ) तेमा न्यi श्रमा भगवान महावीर स्वामी भी।ता ॥ त्यां गया. ( उवागच्छित्ता समण भगवौं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करित्ता वंदइ नमसइ) त्यां न तेमणे श्रम लगवान महावीरने विधिपू बहन नम:४२ ४ा (वंदित्ता नमंसित्ता) वहन नमः॥२ ४शन ( एवं वयासी) तेमाणे श्रम लगवान महावीरने २मा प्रमाणे धुं (आलि. तेण भंते ! लोए, पलित्तण भंते लोए, आलितपलितेण भंते ! लोए) मावान ! આ લેક જરા અને મરણથી બળી રહ્યો છે–સળગી રહ્યો છે. હે ભગવાન! આ લોક તે બનેથી પ્રજવલિત થઈ રહ્યો છે-એટલે કે અત્યંત બળી રહ્યો છે હે ભગવન ! આ લેક ચેમેરથી જરા મરણથી આદીત પ્રદીપ્ત (જવલિત પ્રજવमित २७ रह्यो छ. मह मे हष्टांत मापे छ-(से जहाणामए केइ गाहावईआगासि ज्झियायमाणंसिं) रवी रीत स्थना भानमा मास मागे त्यारे ते (जे ते तत्थ अप्पभारे मोल्लगुरुए भंडे भवइ त गहाय आयाए
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૨