SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 625
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १३ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ६११ तद् भदंत) असंदिग्धमेतद् भदंत ! ईप्सितमेतद् भदंत! प्रतीप्सितमेतद् भदंत ! ईप्सितप्रतीप्सितमेतद् भदंत ! तद् यथैतद् यूयं वदथ, इति कृत्वा श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति वन्दित्वा नमस्यित्वा उत्तरपौरस्त्यं दिग विभागमवक्रामति अवक्रम्य त्रिदंडं च कुण्डिकां च यावत् धातुरक्तांश्चैकान्ते एडयति एडयित्वा यौव यह निर्ग्रन्थ प्रवचन अवितथ-सत्य है। (असंदिद्धमेयं भंते !) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सर्वथा असंदिग्ध है। (इच्छियमेयं भते!) हे भदन्त ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ईप्सित-वांछनीय है। (पडिच्छियमेयं भंते!) हे भदन्त यह निर्ग्रन्थ प्रवचन प्रतीप्सित-अत्यन्त वांछनीय है! (इच्छियपडिच्छियमेयं भंते !) हे भदंत ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ईप्सित प्रतीप्सित-एकांतवांछनीय है। (से जहेयं तुम्भं वयह त्ति) यह निर्ग्रन्थ प्रवचन जैसा आपने कहा है वह वैसा ही है ! इस प्रकार (कटु) कह कर स्कन्दक ने (समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ) श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की, उन्हें नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके फिर वे (उत्तरपुरथिम दिसिभागं अवक्कमइ) उत्तर पौरस्त्य दिग्विभाग में उत्तर पूर्वदिशा के कोने में-अर्थात् ईशानकोण में गये (अवक्कमित्ता तिदंडंच, कुंडिय च, जाव धाउरत्ताओ एगते एडेइ ) वहां जाकर उन्हों ने अपने त्रिदण्ड को, कमण्डलु को यावत् गैरिक आदि धातु से रँगे हुए वस्त्रों को एकान्त में-रख दिया। (एडित्ता) उन्हे एकान्त में छ. तमा ४ आने स्थान १ नथी 'असंदिद्धमेयं भंते ! 3 लापान । निय प्रययन सवथा मसहिग्य २५८ छ. "इच्छियमेयं भंते !" उ मापन म निथ अपयन २०१॥ योग्य छ, 'पडिच्छियमेयं भंते' 3 मापन् ! ! निथ अपयन मत्यत २०१॥ योग्य छे. 'इच्छियपडिच्छियमेय भंते ! 8 मापन આ નિન્ય પ્રવચન સિત પ્રતીસિત ઈચ્છિત તથા વિશેષ ઈચ્છિત છે. ( से जहेयं तुब्भं वयहत्ति ) मापन! ४ा प्रमाणे ४ ते निथ प्रयन छे. मा प्रमाणे ( क१) ४डीने २४३ (समण भगवं महावीर वंदइ नमसइ) श्रम मगवान महावीरने न ४२१, नम२४.२ ४ा. ( वंदित्ता नमंसित्ता) पहन नभ२७।२ तेया (उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ) उत्तर भने हिशा १२येना भूप्युामां-शान भूमी-गया. ( अवक्कमित्ता तिदंडंच, कुडियं प, जाव धाउरत्ताओ एगंते एडेइ) त्या ४४ तेभए तमना त्रि, भ31 અને આગળ જણાવેલી ભગવા વસ્ત્રો સુધીની બધી વસ્તુઓ એકાંતમાં મૂકી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy