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________________ ટ भगवती सूत्रे नसंशयः - विशेष तमसंशययुक्तः, 'समुप्पण्ण को ऊहल्ले ' समुत्पन्नकुतूहल:= विशेषतमौत्सुक्ययुक्तः । अत्र श्रद्धादौ कार्यकारणभावश्चेत्थम् - प्रश्न वाञ्छारूपा श्रद्धा जाता, तस्याः कारणं संशयः कुतूहलं चेति । एतादृशो रोहनामा नगारः 'उडाए ' उत्थया= स्वस्यैवोत्थानशक्त्या न तु परसाहाय्येन 'उट्ठे' उत्तिष्ठति, 'उट्ठाए उडित्ता' उत्थया उत्थाय ' जेणेव समणे भगवं महावीरे ' यंत्रैव स्थाने श्रमणो भगवान् महावीरः ' तेणेव उवागच्छइ ' तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता' उपागत्य भगव - त्समीपे समागत्य ' समणं भगवं महावीरं ' श्रमणं भगवन्तं महावीरं ' तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करे३' त्रि कृत्व आदक्षिणप्रदक्षिणं करोति, कृत्वा 'वंदइ नमं थी इसी कारण जो संशय उन्हें उत्पन्न हुआ था वह भी विशेषतम रूप से उन्हें उत्पन्न हुआ था अतः वे समुत्पन्नसंशय कहलाये । और अपने किये हुए प्रश्न के उत्तर सुननेका उत्कंठारूप भाव भी उन्हें विशेषतम रूपसे जग चुका था इसलिये वे समुत्पन्न कुतूहल कहलाये । यहां श्रद्धादिक में कार्यकारणभाव इस प्रकार से है - रोह अनगार के चित्त में जो प्रश्नवाञ्छारूप श्रद्धा उत्पन्न हुई उसके कारण संशय और कुतूहल (उत्कंठा ) था । ऐसे वे रोह नाम के अनगार उठाए उट्ठे " अपनी ही उत्थानशक्ति से उठे पर की सहायता से नहीं । "उत्थया उत्थाय " और अपनी उत्थानशक्ति से उठ कर ( जेणेव समणे भगवं महावीरे) जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे ( तेणेव उवागच्छ ) वहीं पर आये । (उवागच्छित्ता) वहां आकर (समणं भगवं महावीरं) उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को ( तिक्खुत्तो) तीन बार ( आयाहिणपयाहिणं करेइ ) Es રૂપે, વિશેષરૂપે કે વિશેષતર રૂપે જ રહી ન હતી. પણ વિશેષતમરૂપે ઉત્પન્ન થઇ હતી એજ પ્રમાણે જે સંશય તેમને ઉત્પન્ન થયા હતા તે પણ વિશેષતમ રૂપે ઉત્પન્ન થયા હતા. તેથી તેમને “સમુત્પન્નસંશય” કહેલા છે. પેાતે પૂછેલા પ્રશ્નોના ઉત્તર સાંભળવાની ઉત્સુકતા પણ તેમના ચિત્તમાં વિશેષતમરૂપે જાગૃત થઈ હતી તેથી તેમને અહીં “સમુત્પન્નકૌતુહલ” કહ્યા છે. શ્રદ્ધા વગેરેમાં કાય કારણભાવ નીચે મુજબ છે. રોહ અણુગારના મનમાં જે પ્રશ્ન વાંછારૂપ શ્રદ્ધા ઉત્પન્ન થઇ તે કાય અનેતેનાં કારણેા સંશય અને કુતૂહલ (ઉત્કંઠા) હતાં એવા તે રોટુ નામના અણુગાર “उट्ठाए उट्ठेइ" पोतानी भेजेन उडया. “उद्वार उट्ठित्ता " पोतानी भेजे ४ ठीने " जेणेव समणे भगव महावीरे " नयां श्रभणु भगवान महावीर स्वाभी मिराभमान हता. "तेणेव उवागच्छइ” त्यां गया. "उवागच्छित्ता” त्यां म्हाने "समणं भगव महावीर” तेमले श्रमण भगवान महावीरने “ तिक्खुतो " 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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