SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०० भगवतोसूत्रे देव भवग्रहणैरात्मानं संयोजयति आनादिकं च खलु अनवदनं दीर्घावं चातुरन्तसंसारकान्तारमनुपर्यटति, ‘से तं मरमाणे बइ' तदेतत् नियमाणो वर्द्धते अनेन प्रकारेण म्रियमाणो जीवो दर्द्धते संसार दीर्घाकरोतीत्यर्थः, ' से तं बालमरणे' तदेतद् बालमरणम् , बालमरणं निरूप्य पंडितमरणं निरूपयितुमाह-'से किं तं पंडियमरणे' इत्यादि । अथ किं तत् पंडितमरणम् , भगवानाह- 'पंडिय मरणे' इत्यादि । ' पंडियमरणे दुविहे पण्णत्ते' पंडितमरणं द्विविधं प्रज्ञप्तम् , तत्वातत्वविवेकविकलस्य जीवस्य यन्मरणं तद्वालमरणम् , तथा तत्यातत्वविवेक मरा जीव अनन्त तिथंच संबंधी अनंत मनुष्य संबंधी और अनंत देव संबंधी भवों में जन्म मरण करता रहता है इस तरह वह अनादि अनंत इसदीर्घ मार्गवाले चतुर्गतिरूप संसार में ही बार २ जन्म मरण के चक्कर में पड़कर अपने लिये संसार बढातारहता है। ‘से तं मरमाणे वह ' इस प्रकार से संसार का जो बढ़ना है वह जीव का बढना है। कहने का तात्पर्य यही है कि बालमरण से मरा हुआ जीव अपने संसार को दीर्घ करता है । ' से तं बालमरणे' इस प्रकार से यह बालमरण के विषयमें स्पष्टीकरण है। ‘से किं तं पंडियमरणे' हे भदन्त ! पण्डित मरण क्या है ? 'पंडियमरणे दुविहे पण्णत्ते' पण्डित मरण दो प्रकार का कहा गया है तत्त्व और अतत्व के विवेक से विकल बने हुए प्रागी का जो मरण होता है वह तो बाल मरग कहलाता है-और तत्त्व एवं अतत्त्व के विवेक से युक्त हुए प्राणी का जो मरण होता है वह पंडित मरण कहलाता है। यह पोदपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान के भेद से તિર્યચ, મનુષ્ય અને દેવના અનંત ભવોમાં જન્મ મરણ કરતે રહે છે, એટલે કે તે અનાદિ, અનંત અને દીર્ધ માગ વાળા ચાર ગતિ રૂપ સંસાર કાંતારમાં વારં વાર પરિભ્રમણ કર્યા કરે છે. આ રીતે તે જીવને સંસાર વધતું રહે છે. " से त्त मरमाणे वदृइ " मारीत ससाना पचाने पनु व उवामा આવ્યું છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે બાર પ્રકારનાં બાલમરણથી મરતે पाताना ससारनी वृद्धि ४२ छ. से तं बालमरणे" प्रमाणे भासમરણનું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે. प्रश्न- “से कि त पंडियमरणे पारित भ२६५ सटसे शु.? उत्त२- पडियमरणे दुविहे पण्णत्ते" ५ ठित भ२५ मे प्र४२i i छ. તત્વ અને અતત્વના વિવેકથી રહિત જીવનું જે મરણ હોય છે તેને બાલમરણ કહે છે, અને તત્વ અને અતત્વના વિવેકથી યુક્ત જીવનું જે મરણ હોય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy