________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५९३ स्यांतो न भवति सदैवविद्यमानत्वात् । ' भावो णं सिद्धे अणंता णाणपज्जवा' भावतः खलु सिद्धः-अनता ज्ञानपर्ययाः ज्ञानपर्यायाणामनंतत्वेन ज्ञानस्य च जीवस्वरूपतया ज्ञानात्मकभावेन सिद्ध जीवोप्यनंतो भवतीत्यर्थः, 'अणंता दंसणपज्जवा' अनंतादर्शनपर्यवाः यथा ज्ञानपर्याया अनंतास्तथा दर्शनपर्याया अनंतःस्तथा दर्शनपर्याया अपीति, 'अणंता अगुरुलहुपज्जवा' अनंता अगुरु लघुपर्यायाः, अनंता अगुरुलघुपर्यायाः जीवस्वरूपमाश्रित्यागुरुलघुत्वपर्यायत्वं बोध्यमिति । 'नत्थि पुण से अंते ' नास्ति पुनस्तस्यांतः तस्य सिद्धस्य भावतः कदाचिदपि अन्तो न भवति सदैव विद्यमानत्वादिति भावः । 'से तं दव्यओ णं सिद्धे स अंते' तदेतत् द्रव्यतः खलु सिद्धः सांतः 'खेत्तओ णं सिद्धे स अंते ' क्षेत्रतः खलु सिद्धः सांता, सिद्ध जीव का काल को अपेक्षा से अंत नही होता है क्यों कि वह सदा विद्यमान रहता है । 'भावो णं सिद्धे अणंता णाणपन्जवा' भाव से सिद्ध अनन्तज्ञानपर्यायरूप हैं । तात्पर्य यह है कि-ज्ञान की पर्यायें अनन्त होती हैं और ज्ञान लीव कानिजस्वरूप है इसलिये ज्ञानरूप होने के कारण सिद्ध जीव भी अन्त रहित है-अनन्त हैं, ( अणंता सण पज्जवा) जिस प्रकार से ज्ञान की पर्यायें अनन्त है । उसी तरह से दर्शन को भी पर्यायें अनन्त हैं। अणंता अगुरुलहुयपज्जवा ' अगुरूलघु गुण की पर्यायें भी अनन्त हैं-जीव के स्वरूप का आश्रित कर यहां अगुरुलघुपर्यायता जाननी चाहिये । इसलिये ( नत्धिपुण से अंते ) सिद्ध जीव का कभी भी भाव की अपेक्षा से अन्त नहीं होता हैं। क्यों कि इस अपेक्षा वह सदा विद्यमान माना गया है । इस कथन का अब उपसं" नत्थि पुण से अते " ५९ ते सिद्ध सपने मत तो नथी. ४१२६ तेनुं मस्तित्व सही १२ छ. भाटे मन छ (मत २हित) छ "भावओ णं सिद्धे अणता णाणपज्जवा" भावना अपेक्षा 9 मनात ज्ञान पर्याय ३५ હોય છે–તાત્પર્ય એ છે કે જ્ઞાનની પર્યાયો અનંત હોય છે-અને જ્ઞાન જીવનું નિજસ્વરૂપ છે. તેથી જ્ઞાન રૂપ હોવાને કારણે સિદ્ધ જીવ પણ અનંત (અંત. २डित) डाय छ अणंता दंसणपज्जवा" म शाननी पर्यायी मनात डाय छ तेम सिद्धने शननी पर्याय ५९५ मन य छे. " अणंता अगुरुलहुयपज्जवा" मने शुरु सधु गुनी पर्यायो ५७ मन त य छ- वन २१३५ने मनुसक्षीन मही शुरु सधु पर्याय समची. तेथी " नत्थि पुण से अते" मावनी अपेक्षा सिद्धपनी ही ५९ मत तो नथी ते અતરહિત હોય છે. હવે આ કથનને ઉપસંહાર કરતાં સૂત્રકાર કહે છે કે भ ७४
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨