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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० १ सू० १२ स्कन्दरचरितनिरूपणम् ५९१ सांता ' कालो सिद्धि अणंता' कालतः सिद्धिरनंता, 'भावओ सिद्धी अणंता' भावतः सिद्धिरनंता हे स्कन्दक तब मनसि योयं संकल्पोऽभूत् किमियं सिद्धिः सांता अनंता वेति तस्य संक्षेपत इदमुतरम् द्रव्यक्षेत्राभ्यां सिद्धिः सांता कालमा. वाभ्यां चानंता । इति तृतीयप्रश्नोस्योत्तरम् ॥ ३ ॥ जे वि य ते खंदया' योपि च ते स्कन्दक ! ' जाव' यावत्-यावत्पदेन-' ते मनसि एतादृश आध्यात्मिकादिविचारः समुदपद्यत किं सांतः सिद्धः ' इति संग्राह्यम् । ' किं अगंते सिद्धे' किं अनन्तः सिद्धः : तं चेव ' तदेव लोकवक्तव्यतावदेवात्रापि वाच्यत् कियत्पयन्तमित्याह- जाव' यावत्-यावत्पदेन द्रव्यक्षेत्रकालभावतः सिद्धश्चतुर्विधो मया प्रज्ञप्तस्तत्र-' दव्यओ णं एगे सिद्धे स अंते' द्रव्यतः खलु एकः सिद्धः सांतः, 'कालओ सिद्धी अणंता, भावओसिद्धी अणता' कालसे सिद्धि अनन्त है
और भावसे भी वह सिद्धि अनंत है । हे स्कन्दक ! तुम्हारे मन में जो यह संकल्प हुआ है कि सिद्धि सान्त-अन्त सहित या अनन्त अन्त रहित है उसका संक्षेप से यह उत्तर है कि द्रव्य और क्षेत्र की अपेक्षा सिद्धि सान्त अन्त सहित है और काल और भाव की अपेक्षा सिद्धि-अनन्तअन्त रहित है। इस प्रकार यह तृतीय प्रश्न का उत्तर है।
जे वि य ते खंदया ! जाव किं अणंते सिद्ध ' इस तरह हे स्कन्दक! जो तुम्हारे मन में उत्पन्न हुआ है कि सिद्ध सान्त-अंत सहित हैं कि सिद्ध अनन्त-अन्त रहित हैं सो इस विषय में सुनो हे स्कन्दक ! द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से मैंने मिद्ध चार प्रकार के प्ररूपित किये हैं-इनमें 'दव्वओ णं एगे सिद्धे स अते , द्रव्य से एक सिद्ध सान्त-अन्त सहित हैं। अर्थात्-एक (सान्त) छे. ५५ "कालओ सिद्धी अणंता, भावओ सिद्धो अणता" m અને ભાવની અપેક્ષાએ સિદ્ધિ અનંત છે. તે સ્કન્દક ! તમારા ત્રીજા પ્રશ્નોનો સંક્ષેપમાં આ પ્રમાણે ઉત્તર છે. -દ્રવ્ય અને કાળની અપેક્ષાએ સિદ્ધિ સાન્ત છે, પણ કાળ અને ભાવની અપેક્ષાએ સિદ્ધિ અનંત (અન્તરહિત) છે. આ રીતે ત્રીજા પ્રશ્નનું સમાધાન કરવામાં આવ્યું છે. ___ "जे वि य ते खंदया ! जाव कि अण ते सिद्ध" 3 २४४४ ! तमा२१ भनमा सेवी ! Biक्षा वगेरे मन छ है " सिद्ध" सान्त (अन्त युत) छ । सनत (मत २डित) छ ?" तो तेनुं समाधान मा प्रमाणे छे-डे २४.६ ! દ્રવ્યની અપેક્ષાએ, ક્ષેત્રની અપેક્ષાએ, કાળની અપેક્ષાએ અને ભાવની અપે. क्षा अभया२ प्रारे में सिद्धनी प्र३५॥ ४री छे. “दव्व ओ ण एगे सिद्धेस अंते' द्रव्यनी अपेक्षा से सिद्ध सान्त सन्त सहित छ. मेटले
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨