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________________ मेयचन्द्रिका टीका श. २ उ. १सू. १२ स्कन्दकचरितनिरूपणम् ५७९ स्थितो नित्यश्च तस्मादेव कारणादस्य लोकस्य कालतोऽतो विनाशो नैव भवतीत्यर्थः। 'भावो णं लोए अणंता वण्णपज्जवा' भावतः खलु लोकः अनंता वर्णपर्यवाः वर्णविशेषाः एकगुणकालत्वादयः, भावतो लोकः अनंतवर्णपर्यवरूप इति, तथा 'अणंता गंधपज्जवा' अनन्ता गन्धपर्यवाः, ' अनंता रसपज्जवा ' अनन्ता रसपर्यवाः 'अनंताफासपज्जवा' अनन्ताः स्पर्शपर्यवाः, अनन्तगन्धरसस्पर्शपर्यायरूपो भावतो लोक इति तथा ' अणंता संठाणपज्जवा' अनंताः संस्थानपर्यवाः, अनन्तसंस्थानरूपो लोको भावत इति, तथा ' अणंता गुरुयलहुयपज्जवा ' अनंता गुरुलघुकपर्यवाः अनंतगुरुलघुपर्यवरूपो लोकः बादरस्कंधेषु तत्सद्भावात् 'अर्णता अगुरुयलहुय पज्जवा' अनंता अगुरुकलघुकपर्यवाः-अनन्तागुरुलघुपर्यायरूपो है, अव्यय है, अवस्थित है और नित्य है इसी कारण इस लोक का काल की अपेक्षा कभी भी विनाश नहीं होता है।" भावओणं लोए अणंता वण्णपज्जवा" भाव से लोक-अनंत वर्णपर्यायरूप है- एक गुणकालत्वादि वर्ण विशेष है अर्थात् वर्णपर्याय हैं ऐसी एक गुण कालत्व आदि पर्याय से लेकर अनंत वर्ण पर्यायरूप यह लोक भाव की अपेक्षा से है । तथा "अणंतागंधपज्जवा, अणंता रसपज्जवा अणंता फासपज्जवा" इसी तरह से भाव की अपेक्षा यह लोक अनंत गंधप; यरूप अनंत रस पर्यायरूप और अनन्त स्पर्शपर्यायरू पहै । " अणंता संठाणपज्जवा" भाव की अपेक्षा यह लोक संस्थान की अनंत पर्यायों रूप है " अगंता गुरुयल हुयपज्जवा" गुरु लघु गुगों की अनंन पर्याय रूप है। गुरु लघु गुण बादरस्कंधों में रहता है। " अगंता अगुरुयल हुय पज्जवा" तथा भावको अपेक्षा से यह लोक अगुरु लघुगुण की अनंत અવ્યય છે અવસ્થિત છે. આ દષ્ટિએ વિચારવામાં આવે તે કાળની અપેક્ષાએ આ લેકે ને કદી પણ નાશ થતું નથી એવું સિદ્ધ થાય છે. "भावाओ ण लोए अणंता वण्णपज्जवा" यानी अपेक्षा या मनात વર્ણપર્યાય રૂપ છે એક ગુણ કાળત્વ વગેરે વર્ણ વિશેષ છે. એટલે કે વર્ણપર્યાય છે. ભાવની અપેક્ષાએ એક ગુણ કાળત્વ વગેરે પર્યાથી લઈને અનંત વણપ र्याय ३५ २als छ. तथा “ अणंता गंधपज्जवा अणंता रसपज्जवा अणंता फासमज्जवा " मेरा प्रमाणे मापनी अपेक्षा 21 as सन २सपर्याय ३५ मत ५५र्याय३५ मने मनात २५ पर्याय ३५ छ. " अणंता संठाणपज्जवा, अणंता गुरुयलहुय पज्जवा, अणंता अगुरुयलहुय पज्जवा" ભાવની અપેક્ષાએ આ લેક સંસ્થાનની અનેક પર્યાયે રૂપ છે, ગુરુ લઘુ ગુણોની શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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