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________________ भगवतीसूत्रे बहुतरप्रदेशापेक्षयापि स्यादत आह-' अव्वए ' अव्ययः तत्मदेशानाम् व्ययरहितत्वात् । तत्प्रदेशानामव्ययत्वं च द्रव्यरूपेणापि संभवतीत्यत आह—' अवहिए' अवस्थितः पर्यायाणामनन्ततया अवस्थितत्वात् । एतावता किमुक्तं भवति ? तत्राह -' णिच्चे ' नित्यः आघन्तरहितः सर्वदैकरूपेण स्थितिमान् कालतो लोक इति 'नथि पुण से अंते ' नास्ति पुनस्तत्यान्तः यतः कालतोयं लोकः पूर्वमप्यासीत् इदानीं वर्तते भविष्यति चानागतकालेपि तथा ध्रुवो नियतः शाश्वतोऽक्षयोऽव्ययोऽवऐसा नहीं है किन्तु "अक्खए" अक्षय है-अविनाशी है-किसी भी कालमें इसका क्षय नहीं है । बहुतर प्रदेशों की अपेक्षा से भी पदार्थ अक्षय माना जा सकता है-सो ऐसा यह लोक नहीं है, किन्तु अव्यय हैइसके समस्त प्रदेश व्यय से रहित है। इस में घटती बढती नहीं होती है। उसके प्रदेशों में अव्ययता द्रव्यरूप से भी संभवती है सो इस रूप से ही अव्ययता लोक में नहीं है किन्तु लोक की जो अनन्तपर्यायें हैं वे सदाकाल उसमें अनन्तरूप से अवस्थित रहती हैं अतः इस रूप से-पर्यायकी अवस्थिति की अपेक्षा से लोक " अवट्ठिए" अवस्थित है। इससे यह सारांश निकला कि काल से लोक " णिच्चे" नित्य है सर्वदा एक सी स्थिति वाला है " नत्थि पुण से अंते" अतः इस अपेक्षा यह लोक अन्त सहित है-अनन्त है। क्यों कि काल की अपेक्षा यह लोक पहिले भूतकाल में भी था, इस समय भी है और आगे भविष्यकाल में भी रहेगा, तथा यह लोक ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है, अक्षय भानी य छ. ५Yaनी मतम मे नथी. ते तो “ अक्खए " अक्षय ( अविनाशी) छे. आई ५५ णे तेनो क्षय थतो नथी. मत२ () પ્રદેશોની અપેક્ષાએ પણ પદાર્થને અક્ષય માની શકાય છે, પણ આ લેક એ નથી પણ આ લેક તે અવ્યય છે. એટલે કે તેના તમામ પ્રદેશે વ્યય રહિત હોય છે. તેમાં વધારો કે ઘટાડો થતું નથી તેના પ્રદેશમાં પણ દ્રવ્યરૂપે અવ્યય પણું સંભવી શકે છે. પણ માં તે પ્રકારનું અવ્યય પણું નથી પણ લેકની જે અનંત પર્યાયે છે તે સદા કાળ તેમાં અનંત રૂપે અવસ્થિત મોજુદ २९ छे. तेथी पर्यायनी मनस्थितिनी अपेक्षा सो “ अवदिए " भवस्थित छे. उपार्नु तात्पय , ती अपेक्षा सो “ णिच्चे" नित्य छ, उमेश से सभी स्थिति वा छे. “नथि पुण से अते" नी अपेक्षा सो સાન્ત (અંત સહિત) નથી પણ અનંત (અંત રહિત) છે. કારણ કે કાળની અપેક્ષાએ આ લોક ભૂત કાળમાં હતું, વર્તમાન કાળે પણ છે અને ભવિષ્યકાળે પણ રહેશે, તથા આ લેક ધ્રુવ છે, શાશ્વત છે, નિત્ય છે, અક્ષય છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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