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भगवतीस्त्रे छाया-ततः खलु श्रावस्त्यां नगर्या शृंगाटक० यावत् पथेसु महाजनसंमर्द इति वा जनव्यूह इति वा यावत् पर्षद् निर्गच्छति । ततः खलु तस्य स्कन्दकस्य कात्यायनगोत्रस्य बहुजनस्यान्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य अयमेतद्रूप आध्यात्मिकः चिन्तितः कल्पितः प्रार्थितः मनोगतः संकल्पः समुदपद्यत । एवं खलु श्रमणो भगवान् महावीरः कृतंगलाया नगर्याः बहिः छत्रपलाशके चैत्ये संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति, तद् गच्छामि खलु श्रमणं भगवन्तं महावीरं (सिंघाडग जाव पहेसु) जो शृङ्गाटक-त्रिकोणमार्ग जहां तीन मार्गमिलते हों जहां चार मार्ग मिलते हों ऐसे अनेक प्रकारके मार्गों में (महया जणसंमद्देइ वा जण चूहेइ वा) लोगोंकी बहुत बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई और लोक भगवान के पधारने की बातें करने लगे (जाव परिसा निग्गच्छद) यावत् सभा निकली (तएणं) इसके पश्चात् (कच्चायणस्स गोत्तस्स तस्स खंदयस्स ) कात्यायन गोत्र वाले उस स्कन्दक के मन में (बहुजणस्स अन्तिए एयमढे सोच्चा निसम्म ) अनेक मनुष्यों के पास से इस अर्थ को भगवान महावीर के आगमन रूप समाचार को सुन करके
और उसे अपने हृदय में निश्चित करके (इमे) यह ( एयारूवे ) इसरूप ( अज्झथिए ) आध्यात्मिक ( चिंतिए ) चिन्तित (कप्पिए ) कल्पित (पस्थिए) प्रार्थित (मणोगए ) मनोगत (संकप्पे ) संकल्प (समुप्पझिस्था उत्पन्न हुआ। कि (एवं खलु समणे भगवं महावीरे कयंगलाए नयरीए) श्रमण भगवान महावीर कृतंगला नगरी के बहिया ( छत्तपलासए) चेइए ) जो छत्रपलाशक नाम का चैत्य है उस में (संजमेणं तवसा (सिंघाडग जाव पहेसु ) Su0मा- न्यो ऋY भाई भतi य, यार भागो ममा डाय, मेवी रीते मने ५४.२ना मागोमा ( महया जणसंमद्देइ. पा जणवूहेइवा) सोना माटी समुदाय से 5 गयो भने समसपानना मागमाननी पातो ४२१॥ या. (जाव परिसा निग्गच्छ इ) सोनी પરિષદ પ્રભુનો ઉપદેશ સાંભળવાને નીકળી ઈત્યાદિ તમામ સૂત્રપાઠ અહીં ગ્રહણ ४२३। (तएण) त्या२ मा४ ( कच्चायणस्स गोत्तस्स तस्स खंदयस्स बहुजणस्स अतिए एयम8 सोचा निसम्म ) मने भाणुसे पासे थी मान भावी२ना मारामनना સમાચાર સાંભળીને અને તેને પિતાના હૃદયમાં ધારણ કરીને તે કાત્યાયન गोत्रीय २४६४ परिवाना मनमा ( इमे ) । (एयारूवे ) रा ( अज्झथिए) माध्यात्मि, ( चिंतिए) यन्तित, ( कप्पिए) पित, (पस्थिए) प्रार्थित, (मणोगए) मनोगत (संकप्पे ) ४६५ (समुप्पज्जित्था ) उत्पन्न था(एवं खलु समणे भगवौं महावीरे कयंगलाए नयरीए बहिया छत्तपलासए चेइए
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨