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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ ३०१ सू०७ स्कन्दकचरितनिरूपणम् नियम ५१३ एवमुच्यमानः, एवम् अनेन प्रकारेण उच्यमानः-पृच्छयमानः सन् त्वम् ‘एतावं ताव आइक्वाहि ' एतावत्तावदाख्याहि, ये ये प्रश्नाः मया पृष्टास्तेषामुत्तरं तावत् प्रथमं देहि ततः पुनरहमन्यं प्रश्नं करिष्यामीति हृदयम् । ____ 'तएणं से खंदए कच्चायणस्स गोत्ते' ततः खलु स स्कन्दकः कात्यायनगोत्रः, ततस्तदनन्तरं पिंगलकस्य प्रश्नश्रवणानन्तरम् , 'पिंगलए णं णियंठेणं' पिङ्गलकेन निग्रन्थेन ‘वेसालियसावएणं' वैशालिकश्रावकेण 'इणमक्खेवं ' इमम् आक्षेपं प्रश्नमित्यर्थः, 'पुच्छिए समाणे' पृष्टः सन् ‘संकिए' शंकितः, शंका संजाताऽस्येति शंकितः, किमेतस्य पिङ्गलकनिग्रंथप्रश्नस्येदमुत्तरमिद वा उत्तरमित्याकारया शंकया संजातशंकितः 'कंखिए ' कांक्षितः, काङ्क्षा संजाताऽस्येति काक्षितः, एतस्य प्रश्नस्येदमुत्तरं न सम्यक , इदमपि न सम्यक् अतः माणे " इस प्रकार से जब वैशालिक श्रावक ने पूछा और कहा कि तुम " एतावं ताव अक्खाहि" इन मेरे प्रश्नों का पहिले उत्तर दो तब पोछे मैं और प्रश्न पूछंगा । “तएणं से खदए कच्चायणस्स गोत्ते” इस प्रकार से कात्यायन गोत्री वह स्कन्दक परिव्राजक " पिंगलएणं नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खेवं पुच्छिए समाणे" जो कि वैशालिकश्रावक पिंगलक निग्रन्थ द्वारा इन प्रश्नों के पूछे जाने पर वह 'सकिए' शंकित हो गया उसके चित में यह विचार बार२ उठने लगा कि पिंगलक निर्ग्रन्थ ने जो ये प्रश्न पूछे हैं सो उनका उत्तर यह है कि इस तरह से उसका मन डावाडोल होने लगा वह यह निश्चय नहीं कर सका कि इन प्रश्नों का उत्तर निश्चय रूप से क्या है ? " कंखिए" कांक्षायुक्त हो गया न ४२री नाणे छ? 241 २पांय प्रश्नो छ ( एवं वुच्चमाणे) न्यारे वैशालि श्रा१४ पिस 41 प्रमाणे ५७ भने ४ह्यु , (एतावं तावअक्खाहि ) મારા આ પ્રશ્નોના તમે પહેલાં જવાબ આપે પછી હું બીજાં પ્રશ્નો પણ પૂછીશ. (तए ण से खदए कच्चायणस्स गोत्ते) न्यारे अत्यायन गोत्रीय ते २४ परि. माने ( पिंगलए ण नियटेणं वेसालियसावएणं इणमक्खेव पुच्छिए समाणे ) વિશાલિક શ્રાવક પિંગલક નિગ્રંથ વડે આ પ્રશ્નો પૂછવામાં આવ્યા ત્યારે ( संकिए) तेना मनन । नवी पिस भुनिये रे प्रश्न पूछया छ તેને અમુક રીતે જવાબ આપી શકાય કે બીજી કોઈ રીતે જવાબ આપી શકાય ? તેના મનની સ્થિતિ ડામાડોળ થઈ ગઈ આથી તે પ્રશ્નોને કર્યો જવાબ मातेने निय ते ४२१ १४या नडी (कंखिए ) ते क्षायुक्त 25 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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