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________________ भगवतीस्त्रे तिषु याज्ञवल्क्यादिस्मृतिषु अथवा ब्राह्मणशास्त्राणि आरण्यादिकानि उपनिषदादीनि तेषु, पुनः-' परिवायएमु नयेसु' पारिवाज केषु नयेषु 'सुपरिनिहिए यावि होत्या' सुपरिनिष्ठितश्चाप्यासीत् , तत्र 'परिव्वाएसु' पारिव्राजकेषु-परिव्राजकसंबन्धिषु 'नएसु' नयेषु संन्यासपतिपादकानेकतंत्रेषु 'सुपरिनिट्ठिए' सुपरिनिष्ठितः =निपुणः तद्विषयसमीचीनज्ञानवानासीदिति । 'तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए णामं नियंठे वेसालियसावए परिववसइ' तत्र खलु श्रावस्त्यां नगयीं पिगलको नाम निर्ग्रन्थो वैशालिकश्रावकः परिवसति, विशालाया अपत्यमिति वैशालिकः, भगवान् महावीरः वैशालिकस्य श्रावक इति वैशालिकश्रावकः शृणोति जिनवाक्यं यः स श्रावकः तथा च वैशालि कस्य महावीरस्य वचनं शृणोति कर्णाभ्यामिति यः स वैशालिकश्रावकः महावीरआरण्यक आदि ब्राह्मण शास्त्रों में, तथा-(परिनिव्यायएसु नयेसु) परिब्राजक सम्बन्धी शास्त्रों में भी (सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था ) वह बहुत अधिक चतुर था, अर्थात् तद्विषयक ज्ञान से युक्त था। (तत्थ णं सावत्थीए नयरीए ) उसी श्रावस्ती नगरी में (पिंगलए णामं नियंठे ) पिंगल नाम का एक निर्ग्रन्थ रहता था। यह निर्ग्रन्थ( वेसालियसावए ) वैशालिक का श्रावक था-अर्थात् वैशालिक महावीर प्रभुका-श्रावक-उपदेश श्रोता था। विशाला भगवान् महावीर प्रभुकी माताका नाम था। विशालाका जो अपत्य वह वैशालिक अर्थात् भगवान महावीर प्रभु इनका श्रावक था अर्थात् (शृणोति जिनवाक्यं यः सः श्रावकः) इस व्युत्पत्ति के अनुसार वह भगवान महावीर प्रभु के उपदेश का पान करने वाला था। तात्पर्य कहने का यह था। शालोमा तथा ( परिनिव्वायएसु नयेसु) परिवार समधी शास्त्रोमा ५५ ( सुपरिनिट्ठिए यावि होत्था ) ते घ! निogia sal. (तत्थ ण सावत्थींए नयरीए) वे से श्रावस्ती नारीमा (पिंगलए णामं नियठे) पिंस नाभन मे म॥२ २खेतो तो. ते मार (वेसालिय सावए) वैशाલિકના શ્રાવક હતા એટલે કે ભગવાન મહાવીર પ્રભુના શ્રાવક-ઉપદેશ શ્રવણ કરનાર હતા. વિશાલા, મહાવીર સ્વામીની માતાનું નામ હતું તેથી વિશાલાના પુત્ર હોવાથી તેઓ વૈશાલિક કહેવાતા પિંગલક નિગ્રંથ ભગવાન મહાવીરના ઉપાસક હતા તેમને મહાવીર પ્રભુને ઉપદેશ સાંભળો ગમતું હતું તેથી તેમને વૈશાલિક શ્રાવક કહેHiमावेस छ श्रा१४ १५४नी व्युत्पत्ति ! प्रमाणे थाय छे शृणोति जिनवाक्यं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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