SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 503
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. २ ७१ सू. ५ "मडाई" अनगारस्वरूपनिरूपणम् ४८९ जीवत्वमायुष्कं च कर्म उपजीवति, जीवस्वम्-उपयोगलक्षणम् पूर्वबद्धम् आयुष्कं च देहावस्थानकारणम् कर्म उपजीवति-अनुभवति, ' तम्हा जीवेत्ति वत्तव्वं सिया' तस्मात् जीव इति वक्तव्यं स्यात् , अतएव कारणात् स निर्ग्रन्धः जीवशब्देन व्यपदेश्यः स्यादिति भावः । जम्हा सत्ते-सुहासुहेहिं कम्मेहि' यस्मात् सक्तः= आसक्तः शुभाशुभेषु कर्मसु, यस्मात् कारणात् शुभाशुभेषु कर्मसु व्यापूतः ' तम्हा सत्तेति वत्तव्वं सिया' तस्मात् सत्त्व इति वक्तव्यं स्यात् ‘जम्हा तित्तकडुकसायंबिल महुरे रसे जाणइ' यस्मात् तिक्त कटु कषायाम्लमधुरान् रसान् जानाति, एतेषां रसानामास्वादं करोति, तम्हा विन्नुत्ति वत्तव्वंसिया' तस्माद्विज्ञ इति वक्तव्यं स्यात्, तिक्तादि पंचविधरसास्वादकतत्वेन निर्ग्रन्थजीवस्य विज्ञत्वमपि भवतीति भावः । ' जम्हा वेदेत्ति य सुहदुक्खं ' यस्मात् वेदयति च सुखदुःखम् , यस्मात् कारणात् सुखदुःखमनुभवति 'तम्हा वेदोत्ति वत्तव्वं सिया' तस्मात् वेद इति वइ) तथा उपयोग लक्षणरूप जीवत्व का और जो वर्तमान देह में इसके अवस्थान का कारण बना हुआ है उस पूर्वबद्ध आयुष्क कर्म का अनुभव कर रहा है ( तम्हा जीवे त्ति वत्तव्वं सिया) इस कारण यह (जीव) इस शब्द से कहा जा सकता है । ( जम्हा सत्ते सुहासुहकम्मेहिं ) जिस कारण से यह शुभ और अशुभ कर्मों में आसक्त होता रहता है (तम्हा सत्तेति वत्तव्वं सिया) इस कारण यह सत्त्व शब्द से कहा जा सकता है। (जम्हा तित्तकडुकसायंऽबिलमहुरे रसे जाणइ ) जिस कारण यह तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल, मधुर रसों को जानता है-अर्थात् यह इन रसोंका आस्वादन करता है (तम्हा विष्णु त्ति वत्तव्वं सिया) इस कारण यह (विज्ञ ) इस शब्द से कहा जा सकता है । ( जम्हा वेदेत्ति सुहदुक्खं) जिस कारण से यह सुख दुःख का वेदन करता है-अनुभव करता है (तम्हा वेदोत्ति वत्तव्यं सिया) इस कारण यह वेद इस शब्द से कहा લક્ષણ રૂપ જીવત્વને તથા જે વર્તમાન દેહમાં જીવને રહેવાનું કારણ બને છે ते पूममायु०४ भनी मनुभव ४२री २wो छ “ तम्हा जीवेत्ति वत्तव्य सिया" ते ४२ तेने " पा ही २४य छे. “जम्हा सत्ते सुहासुहकम्मे हिं" २ २0 ते शुभाशुभ मां सासरत २७ छे. " तम्हा सत्ते त्ति वक्तव्य सिया" ते २0 तेने "सत्व" ५ ४ामा भाव छ "जम्हा तित्तका कसायऽविलमहुरे रसे जाणइ २ ॥२ ते तीमा, ४७३, तुरे, माटो भने भीडा २ न छे सेट से 3 तेनुं मास्वाहन ४२ छ “ तम्हा विष्णु त्ति वत्तठवंसिया" ते १२ तेन "विज्ञ" ४डी शायछे. “जम्हा वेदेत्ति सुहदुक्खं" २ १२0 ते सुम मते मनुं वन ४२ छ तम्हा वेदोत्ति वत्तव्वं सिया " ते भ६२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy