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भगवतीस्त्र टीका-' मडाई णं भंते' मृतादी खलु भदन्त ! मृतम् अचित्तं वस्तु अत्तीति मृतादी, प्रामुकभोजीत्यर्थः, उपलक्षणत्वात् एषणीयादीत्यपि ज्ञातव्यम् , 'नियंठे' निर्ग्रन्थः, 'नो निरुद्धभवे 'नो निरुद्धभवः, नैव निरुद्धः भवः अग्रेतनजन्म येन स तथा अनिरुद्धभवः चरमभवममाप्त इत्यर्थः । एतादृशश्च भवद्वय.
टीकार्थ-( मडाई णं भंते ) अचित्त वस्तु का नाम मृत है। इस मृतरूप अचित्त वस्तु को जो अपने आहार के उपयोग में लाता है-वह (मृतादी ) कहलाता है । इसका अर्थ जो प्रासुक भोजी है ऐसा वह मृतादी तथा उपलक्षण से एषणीय वस्तु का जो आहार करता है ऐसा वह (एषणीयादी) भी (नियंठे) निग्रन्थ अनगार तिर्यश्च मनुष्यादिगतिरूप संसार को फिर भी प्राप्त करता है । सो यह किस स्थिति में रहकर संसार को पुनःप्राप्त करता है तो इसको स्पष्ट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं ( नो निरुद्धभवे ) इत्यादि यहां ये जितने भी मृतादी श्रवण निर्ग्रन्थ के विशेषण है-उन विशेषणों से विशिष्ट यदि वह श्रमण निग्रन्थ है तो उसके संसार का अंत नहीं होता है अर्थात् वह संसार में ही परिभ्रमण करता रहता है । अब उन्हीं विशेषणों को कहते हैं-(नो निरुद्धभवे ) वह मृतादी श्रमण निर्ग्रन्थ यदि अनिरुद्धभववाला है-चरमभववाला नहीं है अर्थात् अग्रेतन जन्म जिसने अपना निरुद्ध नहीं किया है तो वह नियमतः पुनःमरकर संसार में ही जन्म धारण करेगा।
सूत्रार्थ-" मडाई णं भंते ! मथित्त परतुनेभृत ४ छ ते भृत३५ અચિત્ત વસ્તુને આહાર લેનારને મૃતાદી કહે છે. એટલે કે પ્રાસુક ભેજી तथा सक्षथी अषणीय वस्तुनी माडा२ ४२॥२ ते ' एषणीयादी नियठे" નિગ્રંથ અણગાર પણ શું તિય ચ મનુષ્યાદિ વગેરે ગતિરૂપ સંસારને ફરી કરીને પ્રાપ્ત કરે છે? એટલે કે કઈ પરિસ્થિતિમાં તે નિગ્રંથ સંસારને ફરી शन प्रात ४२ छे ते सूत्र४२ नायना सूत्री २५७८ ४२ छ " नो निरुद्धभवे" त्याहि रे भृताही श्रम निथनां विशेषणे। २॥ सूत्रमा मताव्यां छे, તે વિશેષણથી યુકત શ્રમણ નિગ્રંથના સંસારને અંત આવ નથી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે તે વિશેષણો વાળે શ્રમણ નિર્ચ થ પ્રાસુક આહારનો ઉપભેગ કરવા છતાં પણ સંસારમાં પરિભ્રમણ કરે છે. હવે તે વિશેષણનું સ્પષ્ટીકરણ ४२वामां आवे छे. “नो निरुद्धभवे" ते भृती श्रम नियने मनिરુદ્ધ ભવ વાળો હાય ચરમભવ વાળે ન હોય એટલે કે જેણે પિતાના આગામી ભવનો અંત કર્યો હોય તે અવશ્ય મરણ પામીને આ સંસારમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨