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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१ १०२ सू०३ वायुकाय-आन-पानस्वरूपनिरूपणम् ४७५ एवमुच्यते-'सिय ससरीरी निक्खमइ सिय असरीरी निक्खमइ' स्यात् सशरीरी निष्क्रामति स्यात् अशरीरी निष्क्रामति । भगवानाह—'गोयमा ' इत्यादि। 'गोयमा' हे गौतम ! 'वाउकायस्स णं चत्तारि सरीरा पन्नत्ता' वायुकायस्य खलु चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि, 'तं जहा' तद्यथा 'ओरालिए ' औदारिकम् ‘वेउविए' वैक्रियम् ' तेयए ' तैजसम्। 'कम्मए ' कार्मणम् । 'ओरालिय वेउब्धियाई विप्पजहा य' औदारिकवैक्रिये शरीरे विप्रहाय च, औदारिकवैक्रियशरीरद्वयं परित्यज्येत्यर्थः, 'तेययकम्मएहिं निक्खमइ' तैजसकार्मणाभ्यां निष्कामति, औदारिकवैक्रियशरीरद्वयं परित्यज्य गच्छति अतः शरीररहितो निष्कामतीति कथ्यते, तैजसकार्मणरूपशरीरद्वयेन सहितो यातीत्यतः सशरीरी निष्क्रामवह शरीर को साथ भी ले जाता है । ( से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि वह वायुकायिक जीव शरीर सहित भी परगति में जाता है और शरीररहित होकर भी जाता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम स्वामी से कहते हैं-(गोयमा! वाउकायस्स णं चत्तारि सरीरा पन्नत्ता ) हे गौतम ! वायुकायिक जीव के चार शरीर कहे गये हैं जो इस प्रकार से हैं-(ओरालिए) औदारिक, (वेउव्विए ) वैक्रिय, (तेयए) तैजस (कम्मए) और कार्मण सो वह जीव (ओरालिय वेउब्लियाई विप्पजहाय) औदारिक वैक्रिय शरीर को छोड़कर ही अन्यगति में जाता है। साथ में उस समय उसके (तेयय कम्मएहिं निक्खमइ ) तैजस और कार्माण शरीर रहते हैं । क्यों कि ये दोनों ही शरीर (अप्रतिघाते ) के अनुसार प्रतिघात से रहित होते हैं। શરીરને સાથે નથી પણ લઈ જતા
प्रश्न-" से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ” हे मावन् ! १५ ॥ ४॥२ એવું કહે છે કે વાયુકાયિક જીવો શરીર સહિત પણ પરગતિમાં જાય છે અને શરીર રહિત પણ પરગતિમાં જાય છે?
उत्त२-" गोयमा ! वाउकायस्स णं चत्तारिसरीरा पन्नत्ता" गीतम! वायुायि જીમાં ચાર શરીર કહ્યાં છે. જે આ પ્રમાણે છે. " ओरालिए" मोहा२ि४, " वेउब्विए" वैठिय, “तेयए" तेस, भने “कम्मए" भय वायुायि । “ ओरालियवेउब्वियाइं विप्पजहाय " मोहोरि भने वैठिय शरीरने छोडीन ४ मन्यतिमionय छ ५२ "तेयय कम्मएहिं निक्ख मइ” तेस मने मय शरी२, अन्य गतिमा छ. ४१२९५ ते मन्ने शरीर प्रत्यापातथी २हित य छे. “से तेणढणं गोयमा! एवं उच्चइ सिय ससरीरी निक्ख
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨