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भगवतीसरे प्रत्यायाति १ । हंत गौतम ! यावत् प्रत्यायाति, स भदन्त ! किं स्पृष्टः अपद्रवति अस्पृष्टः अपद्रवति, गौतम ! स्पृष्ट अपद्रवति नो अस्पृष्ट अपद्रवति । स भदन्त ! किं सशरीरी निष्क्रामति अशरीरी निष्कामति, गौतम ! स्यात् सशरीरी निष्कामति स्यात् अशरीरी निष्क्रामति । तत्केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते स्यात् सशरीरी
इत्ता) मर मर कर के पीछे क्या (तत्येव ) वहीं पर ( भुजो भुज्जो) बार २ (पञ्चायाइ) उत्पन्न होता है ? (हंता गोयमा) हां, गौतम ! (जाव पञ्चायाइ) वायुकायिक जीव अनेक लाखों बार मर मर कर फिर वहीं पर उत्पन्न होता है । ( से भंते ! किं पुढे उदाइ ) हे भदन्त ! क्या वह वायुकायिक जीव स्वकायशस्त्र परकायशस्त्र और उभकाय शस्त्र का आघात पहुँचने पर मरता है कि (अपुढे उद्दाइ) विना आघात के मरता है ? (गोयमा ) हे गौतम ! (पुढे उद्दाई नो अपुढे उद्दाइ) वह स्वकायादि शस्त्र का आघात पहुँचने पर मरता है, विना आघात के नहीं मरता हे । ( से भंते ! कि ससरीरी निक्खमइ, असरीरी निक्खमइ ) हे भदन्त ! वह वायुकायिक जीव जब मर मर कर दूसरी गति में जाता है तो क्या शरीर सहित जाता है कि शरीर रहित होकर जाता है ? (गोयमा!) हे गौतम । (सिय ससरीरी निक्खमइ सिय अप्सरीरी निक्खमइ ) वह शरीर सहित भी जाता है और शरीर रहित होकर भी जाता है । (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ सिय ससरीरी निक्खमइ सिय असरीरी निक्ख
છેઃ હજાર વખત વાયુકાયિકમાંથી મરીને વાયુકાની પર્યાયમાં જ શું
शथी पार वा२ अत्यन्न थाय छ! (हता! गोयमा !) &, गौतम ! (जावपच्चायाइ) पायुायि। ।१मत भरीने शथी वायुयानी पर्यायमां १ उत्पन्न थाय छे. (से भंते ! किं पुढे उद्दाइ अपुढे उद्दाइ ?) 3 भगवन् ! ते વાયુકાયિક છે સ્વકાય શસ્ત્ર, પરકાય શસ્ત્ર અને ઉભયકાય શસ્ત્રનો આઘાત पडायवाथी भरे छ ॐ विना माघाते भरे छे' (गोयमा! पुढे उद्दाई नो अपुढेउद्दाई) ते स्वाय वगेरे शस्त्रोने। साधात पयवाथी भरे छ,माघात पांच्या विना भ२॥ नथी ( से भते ! किं ससरीरी निक्खमइ अससरीरी निक्खमइ,) 3 ભગવન્! વાયુકાયિક છે જ્યારે મારીને અન્ય ગતિ માં જાય છે ત્યારે શરીર સહિત तय छे शरीर २डित जय छ! (गोयमा !) गौतम ! (सिय ससरीरी निकखमइ सिय असरीरी निक्खमइ) ते शरी२ सहित ५५ छ भने शरी२ २खित ५ नय छे. ( से केणटेणं भंते ! एवं वुबइ सिय ससरीरी निक्खमइ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨