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________________ છર૮ भगवतीसूत्र नुष्ठानम् , तथा यदुक्तम्-अकिच्चं दुक्खमित्यादि स्वभाववादिमतमाश्रित्य तदपि न सम्यक , यतो यदि कण्टकतैक्ष्ण्यादिवत् सर्व वस्तु अकारणादेव स्यात् तदाऽनेक प्रकारकैहिकपारलौकिककर्मणामभावप्रसंगः स्वीकृतं चान्यतीर्थिकैरपि किंचित् पारलौकिककर्मानुष्ठानम् , एतत्सर्व कथनं परतीथिकानामज्ञानविलसितमिति । अन्ययूथिकानां विभङ्गज्ञाने चत्वारो भङ्गा भवन्ति, ते चेमे-सद्भूते असद्भूतम् । यथा-सद्भूते-परमाणौ, असद्भूतम्-अर्धादिकम् १ । असद्भूते सद्भूतम् , यथाअसद्भूते-व्यापकात्मनि-सद्भूतं-चैतन्यम् २ । सद्भूते सद्भूतम् , यथा-सद्भूते परमाणौ, सद्भूतं-निष्पदेशत्वम् ३ । असद्भूते असद्भूतम् , यथा-असद्भूतेसुख दुःखरूप होने लगे तो अनेक प्रकार के जो ऐहिक और पारलौकिक अनुष्ठान वगैरह किये जाते हैं वे सब ही व्यर्थ हो जावेंगे । सो ऐसा तो है नहीं क्यों कि यदृच्छावादियों ने भी कर्मानुष्ठान आदि माने हैं । तथा स्वभाववादी के मत को आश्रित कर जो (अकृत्यं दुःखं) इत्यादि कहा गया है वह भी ठीक नहीं है। क्यों कि यदि कण्टक आदिकों की तीक्ष्णता की तरह समस्त वस्तुएँ विना करने से ही हो जावें तो फिर अनेक प्रकार के ऐहिक पारलौकिक कर्मों का अभाव मानना पड़ेगा ! परन्तु ऐसा तो है नहीं क्यों कि अन्यतीर्थिक जनों ने भी कुछ पारलौकिक कर्मादिकों का अनुष्ठान करना स्वीकार ही किया है। इसलिये समझना चाहिये कि अन्यतीर्थिक जनों ने जो यह सब कहा है वह उनके अज्ञान का ही कथन है। अन्ययूथिकों के विभङ्गज्ञान में चार भंग होते हैं-वे इस प्रकार से सद्भूत में असदुद्भूत (१) असद्भूत में सद्भूत (२) सद्भूत में सद्भूत (३) असद्भूत में असद्भूत કરવામાં આવે છે તે વ્યર્થ જ જાય? એવું તે બનતું નથી. નિયતિવાદીઓ ५५ मनुहानामा भाने छ “ अकृत्यम् दुःखं”. २मा प्रानी स्वभाववाढीसानी માન્યતા પણ સાચી નથી. કારણ કે કાંટા વગેરેમાં રહેલી તીક્ષણતાની જેમ તમામ વસ્તુઓ વિના કર્યું બની જતી હોય તે અનેક પ્રકારના ઐહિક અને પારલૌકિક કર્મને અભાવ જ માનવે પડશે પરંતુ એવું બનતું નથી. અન્ય મતવાદી એ પણ કેટલાક પારલૌકિક કર્માદિકના અનુષ્ઠાન કરવાનું સ્વીકાર્યું છે. તેથી એમ જ માનવું પડશે કે અન્ય મતવાદિઓએ જે કહ્યું છે તે તેમના અજ્ઞાનને કારણે કહ્યું છે. અન્ય યુથિકે (અન્ય તર્થિકે)ના વિલંગજ્ઞાનમાં ચાર ભાંગા (વિભાગ) થાય છે, તે ચાર ભાગ આ પ્રમાણે થાય છે.(१) सहभूतमा असहभूत, (२) मसलतमा समूत, (3) सद्भूतभा साभूत શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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