SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - भगवतीसूत्रे समयस्यातिसूक्ष्मतया व्यवहारानुपयोगित्वेन वर्तमानकालिकी न भाषेति, तदसंगतम् , वर्तमानसमयस्यैव विद्यमानतया व्यवहारमयोजकलात् , अतीतानागतसमययोस्तु असत्त्वेन व्यवहारानुपयोगिखादिति । यचैः कथितम् 'अभासओ भासा' इत्यादि, तस्योत्तरं ददाति-'सा किं भासओ भासा अभासओ भासा ' सा किं भाषमाणस्य भाषा अभाषमाणस्य भाषा, भाषमाणस्य वर्तमानकालिकोच्चारणकर्तुरेव भाषा भाषा भवति अनुच्चारयितुर्वा भाषेति प्रश्नः, तदुत्तरम्-'भासओ णं भासा नो खलु सा अभासओ भासा' भाषमाणस्य वर्तमानकालिकभाषण कर्तुरेव भाषा, नो खलु सा अभाषमाणस्य भाषा, उच्चारणात् प्राक् न भाषा, उच्चारणानन्तरं च सा न भाषा किन्तु उच्चारणसमये उच्चारयितुरेव या भाषा सैव भाषा भवति, अतीतानागतकालिकी अनुच्चारयितृपुरुषसंबन्धिनी भाषान भाषा ने ऐसा कहा है कि वर्तमान काल अतिसूक्ष्म होने से व्यवहार में अनुपयोगी होता है अर्थात् व्यवहार का अंग नहीं होता है इस कारण वर्तमानकाल संबंधी भाषा भाषा नहीं होती है-सो ऐसा कहना भी ठोक नहीं है क्यों कि वर्तमान जो समय होता है वही विद्यमान होने के कारण व्यवहार का प्रयोजक होता है । अतीत अनागत जो समय हैं ये तो असत्रूप होते हैं-इस कारण वे व्यवहार में अनुपयोगी हुआ करते हैं। तथा अन्यतीर्थियोंने जो पहिले ऐसा कहा है कि (अभासओ भासा) नहीं बोलते हुए की भाषा भाषा है-सो इसका उत्तर देते हुए सूत्रकार कहते हैं कि-(भासओ णं भासा, नो खलु सा अभासओ भासा) वर्तमानकाल में जो पुरुष उच्चारण कर रहा है उसी पुरुष की भाषा भाषा होती है, उच्चारण के पहिले और उच्चारण के बाद में भाषा કાળ અતિ સૂક્ષમ હોવાથી વ્યવહારમાં અનુપયોગી હોય છે. એટલે કે વ્યવહારનું અંગ બનતું નથી, તે કારણે વર્તમાન કાળની ભાષા; ભાષા નથી તેમનું તે કથન પણ ચગ્ય નથી. કારણ કે વર્તમાન સમય જ વિદ્યમાન હોવાથી વ્યવહારને પ્રયજક હોય છે જ્યારે ભૂતકાળ અને ભવિષ્યકાળને સમય તે અસત રૂપ હોય છે તે કારણે તેઓ વ્યવહારમાં અનુપયેગી રહ્યા કરે છે. તથા प्रतिपक्षीय ५७ मे घुछ है “ अभासओ भासा" नही बनानी ભાષા; ભાષા કહેવાય છે તે તેમની તે માન્યતાનું ખંડન કરવા માટે સૂત્રકાર 3 छ “भासाओ ण भासा, न खलु सा अभासभो भासा" पतभाना જે પુરુષ ઉચ્ચારણ કરી રહ્યો હોય છે એજ પુરુષની ભાષાને ભાષા કહેવાય છે, ઉચ્ચારણ પહેલાની કે ઉચ્ચારણ પછીની ભાષાને ભાષા કહેવાતી નથી. ભૂતકાળ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy