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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० १० सू० २ स्वमतस्वरूपनिरूपणम् ३९७ चलितत्वव्यपदेशः, अन्यथा अन्त्यसमयपि चलितत्वं न भवेदिति सर्वापि क्रिया निरर्थिकैव भवेदिति, अतएव वर्तमानस्यापि विवक्षाबलादतीतत्वं न विरुद्धम् । एतत् सर्व पूर्वमेव 'चलमाणे चलिए ' इति सूत्रे प्रतिपादितमिति विस्तरभयान्नेह पुनः प्रतन्यते । यत्पूर्व परतीथिकैः कथितं द्वौ परमाणुपुद्गलौ न संहन्येते अतिसूक्ष्मतया तत्र स्नेहाभावादित्यादि तस्येदमुत्तरम्-'दो परमाणुपोग्गला' इत्यादि, अयमा( तावत्कालं स्थिरं चैनं कः पश्चात् नाशयिष्यति) इस न्याय के अनुसार ऐमा हो मानना चाहिये । कि प्रथम सप्रय से लगाकर ही वस्तु में (चलित ) ऐसा व्यपदेश होने लग जाता है । यदि तब से वस्तु में जो ऐसा व्यपदेश न हो तो फिर अन्तिम समय में भी (चलित ) ऐसा व्यपदेश उस वस्तु में नहीं हो सकता है। इस व्यपदेश के अभाव में जितनी भी क्रियाएँ हैं वे सब निरर्थक ही हो जावेगी। इसलिये वर्तमान की भी विवक्षा के वश से वस्तु में अतीतताविरुद्ध नहीं पड़ती है। वस्तु जिस वर्तमान क्षण में चलन क्रिया विशिष्ट है उसकी अपेक्षा वह वस्तु चलमाण है और वही वस्तु अपने व्यतीत पूर्वक्षणों की अपेक्षा (चलित) है। ऐसा व्यपदेश होने में भला बाधा कौनसी आ सकती है। यह सब विषय विशेषरूप से (चलमाणे चलिए ) इस सूत्र में प्रतिपादित ही किया जा चुका है। अब और अधिक विस्तार भय से इसे पुनः नहिं प्रतिपादित करते हैं । जो परतीर्थिकों ने ऐसा कहा है कि दो परमाणु (परस्पर में मिलते नहीं हैं क्यो कि वे अति सूक्ष्म होते हैं-इस कालं स्थिर चैन कः पश्चात् नाशयिष्यति " मा न्यायानुसार सम भान જોઈએ કે પ્રથમ સમયથી લઈને જ વસ્તુમાં (ચલિત) એવો વ્યવહાર થવા માંડે છે. જે પ્રથમથી જ એ વ્યવહાર થઈ શકતો ન હોય તો અન્તિમ સમયે પણ પ્રદેશ (વ્યવહાર) ને માનવામાં ન આવે તે જેટલી ક્રિયાઓ છે તે બધી નિરર્થક જ બની જશે. માટે વર્તમાનની વિવક્ષાની અપેક્ષાએ પણ વસ્તુમાં અતીતતા (ભૂતકાલીનતા) વિરૂદ્ધ પડતી નથી. જે વર્તમાન ક્ષણે વસ્તુ ચલન ક્રિયાવાળી છે, તે ક્ષણની અપેક્ષાએ તે વસ્તુ ચલમાણ છે અને વ્યતીત થઈ ગયેલી પૂર્વેક્ષણની અપેક્ષાએ એજ વસ્તુ ચલિત છે. તે પ્રકારનો વ્યવडा२ ४२वामा । तनी भुश्ती छ ०१ नही. २मा सामाय विषयतुं “ चलमाणे चलिए" सूत्रमा विस्तार पूर्व प्रतिपान वामां माव्यु छ. तथा અધિક વિસ્તાર થવાના ભયથી તેનું ફરીથી અહીં પ્રતિપાદન કર્યું નથી. પરતીથિકેની જે એવી માન્યતા છે કે (બે પરમાણુ પુલ પરસ્પર સાથે મળીને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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