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________________ ३९२ भगवतीसूत्रे परमाणुपुद्गलानामस्ति स्नेहकायः तस्मात् त्रयः परमाणुपुला एकतः संहन्यन्ते, ते भिद्यमाना द्विधा अपि त्रिधा अपि क्रियन्ते द्विधा क्रियमाणा एकतः परमाणुपुद्गलः एकतो द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, त्रिधा क्रियमाणाः त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एवं यावत् चत्वारः ०, पंच परमाणुपुद्गला एकतः संहन्यन्ते, एकतः 1 परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति) किस कारण से तीन परमाणुपुद्गल एक स्कन्धपर्याय को उत्पन्न करते हैं ? ( तिन्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए ) तीन परमाणु पुद्गलों में स्नेहकाय है । ( तम्हा तिणि परमाणुोग्गला एयओ साहणंति ) इसलिये वे तीन परमाणुपुद्गल मिलकर एक स्कन्धपर्याय का उत्पन्न करते हैं । (ते भिज्जमाणा दुहावि तिहा वि कज्जंति) जब इन तीन पुद्गल परमाणु के विभाग किये जाते हैं तो उनके दो भी भाग हो जाते हैं और तीन भी भाग हो जाते हैं (दुहा कज्जमाना एगयओ परमाणुवोग्गले, एगयओ दुपए लिए खंधे भवइ ) इनके दो भाग इस प्रकार से होते हैं - एक भाग १ परमाणुपुद्गल का हो जाता है और दूसरा भाग दो प्रदेशी स्कन्धरूप रहता है । ( तिहा कज्जमाणा तिष्णि परमाणुपोग्गला भवंति ) जब इनके तीन टुकडे किये जाते हैं तो वे परमाणु पुद्गल १-१-१ इस तरह से तीन भाग में विभक्त हो जाते हैं । ( एवं चत्तारि ) इसी तरह से चार पुगलपरमाणुओं के विषय में भी जानना चाहिये। (पंच परमाणुपोग्गला एगयओ साह ( कम्हा तिष्णि परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ? ) शा अरखे त्रा परमाणु युगल पर्याय ३पे परिशुभे छे. ( तिन्ह परमाणुपोगलाणं अस्थि सिणेहकाए ) ऋणु परमाणु युद्धसोभां स्नेडुअयनो सहुलाव होय छे. ( तम्हा तिष्णि परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति ) ते अरणे त्र परमाणु युद्धसो परस्पर साथै भजीने ो स्धपर्यायश्ये परिणामे छे. ( ते भिज्जमाणा दुहा वि तहा वि कज्जति ) न्यारे ते ऋणु परमाणु युद्धबोना विभाग उरवामां आवे छे. त्यारे तेभना में विभाग पशु पडे छे भने त्र विभाग पशु पडे छे. ( दुहा कज्ज्रमाणा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ) तेभना मे लाग આ પ્રમાણે અને છે એક ભાગ પરમાણુ પુદ્ગલના અને છે એને ખીજે ભાગ मे अहेशी सुध३५ मने छे. ( तिहा कज्जमाणा तिष्णि परमाणुपोग्गला भवंति ) જયારે તેમના ત્રણ વિભાગ કરવામાં આવે છે ત્યારે પ્રત્યેક વિભાગ ૧, ૧ परमाणु युद्धानेो मने छे ( एवं चत्तारि ) यार परमाणु पाशु खेभ ४ समन्वु ( पंच परमाणुपोग्गला एगयओ युद्धसोना विषयभां साहणंति ) पांथ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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