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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. १० सू. २ स्वमतस्वरूपनिरूपणम् ३९१ एकतः संहन्येन्ते, कस्मात् द्वौ परमाणुपुद्गलौं एकसः संहन्येते, द्वयोः परमाणुपुद्गलयोरस्ति स्नेरकायः, तस्माद् द्वौ परमाणुषुद्गलौ एकतः संहन्येते, तौ भिधमानौ द्विधा क्रियेते, एकतः परमाणु पुद्गल एकतः परमाणुपुद्गलो भवति, त्रयः परमाणु पहलाः एकतः संहन्ते, कस्मात् त्रयः परमाणुपुरलाः एकतः संहन्यन्ते, त्रयाणां चलमाणे चलिए जाव णिज्जरिज्जमाणे निज्जिण्णे ) कि जो चल रहा है वह चल चुका है यावत् जिसकी निर्जरा हो रही है उसकी निर्जरा हो चुकी है । (दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ) दो परमाणु पुद्गल आपस में मिलकर स्कन्धपाय को उत्पन्न करते हैं । (कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ) किस कारण से दो परमाणुपुद्गल आपस में मिलकर स्कन्धपर्याय करते हैं ? इसका उत्तर यह है कि-(दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं अस्थि सिणेहकाए ) दो परमाणु पुद्गलों में स्नेहकाय है। (तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति ) इस कारण वे दो परमाणु पुनल स्कन्धपर्याय को उत्पन्न करते हैं। (ते भिज्जमाणा दुहा कज्जति) यदि किये जायें तो इनके दो भाग हो जाते हैं । (दुहा कज्जमाणा एमयओ परमाणुपोग्गले एगयओ परमाणु पोग्गले भवइ) एक भाग एक परमाणु का और दूसरा भाग भी एक परमाणु का हो जाता है । (तिणि परमाणु पोग्गला एगयओ साहणंति) तीन परमाणु पुद्गल आपसमें मिलकर स्कन्धपर्याय को उत्पन्न करते हैं। (कम्हा तिण्यिा चलिए जाव णिज्जरिज्जमाणे निजिण्णे ) मे यादी २युं छे ते ही यूयु छ ( यावत् ) नी नि२२६ २४ी छे ते ४ नि0 45 यूथु छ. ( दो परमाणुपोग्गला एगयओ साहणंति) मे ५२मा पुस ५२०५२ साथे सयौ। पाभीन से २४५पर्याय ३थे परिषभे छ. (कम्हा दो परमाणुपोग्गला एरायो साहणंति ? ) ॥ ४॥२६ मे ५२मधुरस भजीन से पर्याय३ये परिणभे छ ? उत्तर- ( दोण्ह परमाणुपोग्गलाण अत्थि सिणेहकाए) तेरे ५२मा पुरतामा ५ स्नेहायना सदलाव डाय छे. तम्हा दो परमाणुयोगला एगयो साहणंति) ते २१ ते ५२मारतो पण पर्यायचे परिशा छे. (ते भिजणाणा दुहा कज्जति) ले तभन्न विभाग सामा आवे तो मे वि थाय छे. (दुहा कज्जमाणा एगयो परमाणुपोग्मले एगयओ परमाणुपोग्गले भयह) तेभाना मे मा ५२भाशुनो मेने मी मार पY ४ ५२भाएन। थाय छे. (तिमि परमाणुपोग्गला एगयओ साहति) ત્રણ પરમાણુ પુતલે પરસ્પર સાથે સંગ પામીને અંધપર્યાય રૂપે પરિણામે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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