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____ भगवतीसूत्रे भवन्तीति भावः, अत्र दुःखदायकत्वाद् दुःखं कर्म कार्ये कारणोपचारात् 'दुक्खे बि यणं से' दुःखमपि च खलु तत् , 'सासए' शाश्वतम् 'सया समियं' सदा समितं, सम्यक सपरिमाणं वा, ' उवचिज्जइ य' उपचीयते च ' अवचिज्जइ य ' अपचीयते च, उपचीयते वृदिम् प्राप्नोति,अपचीयते, हासं प्राप्नोति, पंच परमाणवो मिलित्वा कर्मरूपेण परिणमंति, तत्कर्म प्रवाहरूपेण नित्यं सत् सर्वदैव चयापचयौ माप्नोतीत्यर्थः। ताए कज्जति ) ऐसा कहा है सो इसका तात्पर्य ऐसा है कि वे पांच पुद्गलपरमाणु एकड़े होकर कर्मरूप में परिणत हो जाते हैं। यहां जो दुःश्व को कर्मरूर कहा गया है सो कार्य में कारण के उपचार से कहा गया है । क्यों कि कर्म दुःख का दाता होने से दुःख का कारण होता है । और दुःख उसका कार्य होता है । अतः कार्य रूप दुःख में कर्मरूप कारण का उपचार करके उसे यहां स्वयं कर्मरूप कह दिया है । (दुक्खे वि य णं से सासए ) वह दुःख रूप कर्म शाश्वत है। (सया समियं) सदा समित परिमाणुसहित है। (उवचिज्जइ अवचिज्जइ) उपचय और अपचय उसमें सर्वदा होता रहता है। तात्पर्य कहने का यह है कि पांच परमाणु मिलकर कर्मरूप से परिणम जाते हैं। वह कर्म प्रवाहरूप से नित्य होता हुआ भी सर्वदा ही चय और अपचय को प्राप्त होता रहता है। चय का अर्थ वृद्धि और अपचय का अर्थ हास है । ( सया समिय) पद यह प्रकट करता है कि कर्म में जो चय और अपचय होता है वह प्रमाण माप सहित होता है । इसके लिये गुणहानी का प्रकरण देखना चाहिये।
हीरे " दुक्खत्ताए कज्जति" शेवु ४ामा माव्यु तेनुं तत्यय ये छ કે તે પાંચ પરમાણુ પુલ એકત્ર થઈને કમરૂપે પરિણમે છે. અહીં જે દુઃખને કર્મરૂપ કહેવામાં આવ્યું છે તે કાર્યમાં કારણના ઉપચારની અપેક્ષાએ કહેલ છે, કારણ કે કર્મ, દુઃખ દેનાર હોવાથી દુઃખનું કારણ ગણાય છે. અને દુઃખ તેનું કાર્ય ગણાય છે. તેથી કાર્યરૂપ દુઃખમાં કમરૂપ કારણના ઉપચારની અપેक्षा तेने मी स्वय भ३५ ४डस छ. " दुक्खे वि य ण से सासए" ते ९:५३५ ४ यत छे. “सया समिय" सहा समित (परिमाण सहित) छे. “ उवचिजइ अवचिजह " तेभा सह ५२य अने अ५यय थया रे . કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે પાંચ પરમાણુ મળી જઈને કર્મરૂપે પરિણમે છે. તે કમ પ્રવાહરૂપે નિત્ય હોવા છતાં પણ સર્વદા ચય અને અપચય પામ્યા ४२ छे. यय मेट वृद्धि भने अ५यय टोडास. (डानि) “सया समियं" પદ એ બતાવે છે કે કર્મમાં જે ચય અને અપચય થાય છે તે પ્રમાણસહિત (માપ) થાય છે તેના વિષયમાં ગુણહાનીનું પ્રકરણ જોઈ લેવું.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨