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________________ प्रमेयचन्दिका टीका श. १ उ. १० सू० १ अन्ययूथिकमतनिरूपणम् ३७५ माणुपुद्गलौ 'एगयो न साहयांति' एकतो न संहन्येते, एकत एकत्वेनैकस्कंध. स्वरूपेण न संहन्येते न संहतो संमिलितौ स्याताम् , द्वयोः परमायोः परस्परं संमेलनं कुतो न भवतीति कथयति-'कम्हा दो परमाणु पोग्गला एगयओ न साणंति' कस्मात् द्वौ परमाणुपुद्गलौ एकतो न संहन्येते, एकस्कन्धतया न परिगयेते । परस्परासंयेलने कारणमाह-'दोहं परमाणुपोग्गलाणं ' द्वयोः परमाणु पुगलयोः 'नथि सिणेहकाये नास्ति स्नेहकायः द्वयोः परमायोः सूक्ष्मत्वातत्र स्नेहकायः-स्नेहपर्यायराशि स्ति, 'तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न तथा-और भी इनकी क्यार मान्यताएँ हैं सो सूत्रकार इन्हें (दो परमाणु पोम्मला) इत्यादि सूत्र द्वारा प्रकट कर रहे हैं-(दो परमाणुपोग्गला एगयो न साहणंति) दो परमाणु पुद्गल एकस्कन्धरूप में नहीं परिणमते हैं । इस विषय में उनका ऐसा कहना है कि दो परमाणु मिलकर द्वक पुक स्कंध को नहीं बना सकते हैं । क्यों कि वह अत्यन्त सूक्ष्म होते हे । इसलिये उनमें स्नेह गुण जो बंध होने में अर्थात् स्कन्ध रूप होने में कारण होता है नहीं होता है । यही बात सूत्रकार ने (कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयो न साहणंति) इस सूत्र द्वारा शंकाल्प में उत्था पित कर (दोण्हं परमाणु पोग्गलाणं नत्थि सिणेहकाए) इस उत्तर सूत्र द्वारा स्पष्ट की है। दो परमाणुपुद्गल एक स्कन्ध को बनाने के लिये संहत-संमिलित किस कारण से नहीं होते हैं ? तोइसक्न-उत्तर उनकी ओर से ऐसा दिया गया है कि वे दो परमाणु सूक्ष्म होते हैं-अतः सूक्ष्म होने के कारण स्नेहपर्याय राशि उनमें नहीं होती है । इस कारण ( दो तमनी भी मान्यता यी ४यी छे ते सूत्र।२ “दो परमाणु पोराला" छत्याहि सूत्री 43 ५४८ रे छ-" दो परमाणु पोग्गला एयओ न साहणंति" બે પરમાણુ યુદ્ધ એક ધરૂપે પરિણમતા નથી. તે બાબતમાં તેમની માન્યતા એવી છે કે બે પરમાણુ મળીને બે અણુવાળે (દ્વયણુક) સ્કંધ બનાવી શકતા નથી કારણ કે તેઓ અત્યંત સૂક્ષમ હોય છે. તેથી કંધરૂપે પરિણમવા માટે કારણરૂપ નેહરુણને તેમનામાં સદ્દભાવ હેત નથી. એ જ વાત સૂત્રકારે " कहा दो परमाणुपोग्गला एगयो न साहणंति" मा सूत्रप ॥३२ ५यि ४२ " दाण्ई परमाणुपोग्गलाण नत्थि सिणेहकाए " 40 सूत्र प्रतिપક્ષીઓ તરફથી તેને ઉત્તર આપ્યો છે બે પરમાણુ યુદ્ધ શા કારણે સંગ પામીને એક સ્કષરૂપ બનતાં નથી ? તેને આ પ્રમાણે પ્રતિપક્ષીઓએ ઉત્તર આપ્યો છે–એ પરમાણુ સૂમ હોય છે. સૂક્ષમ હોવાને લીધે તેમનામાં નેહ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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