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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० १० सू० १ अन्यथिकमतनिरूपणम् ३७३ ति' चलद् अचलितम् , चलत् कर्म चलितमिति न संभवति, चलता कर्मणा चलितकार्यस्यानिष्पादनात् , तथा चलदिति वर्तमाननिर्देशः चलितमिति भूतनिदेशः, शत्प्रत्ययक्तप्रत्यययोर्वर्तमानभूतकालबोधकत्वात् , तथा च वर्तमानस्य भूततया व्यवहारो न संभवति, अतश्चलकर्म चलितमिति न मन्यन्ते परतीथिकाः १ 'जाव निजरिज्जमाणे अनिजिण्णे' यावत् निर्जीयमाणमनिर्जीर्णम्। अत्र यावत्पदेन "उदीरिज्जमाणे अणुदीरिए २, वेइज्जमाणे अवेइए ३, पहिज्जमाणे अपहीणे तात्पर्य इस कथन का इस प्रकार से है-कि जो क अभी आत्मा से चल रहा है चल चुका नहीं है उसको चल चुका मानना यह बात संभ. वित नहीं होती है । क्यों कि वर्तमान में चलता हुआ कर्म चल चुके कर्म के कार्य को निष्पादन करने में असमर्थ माना गया है। तथा (कर्म आत्मा से) (चलत् ) चल रहा है यह निर्देश वर्तमान काल संबंधी है। और (चलितम्) कर्म आत्मा से चल चुका यह निर्देश भूतकाल संबंधी है । ( चलत् ) में चल धातु से वर्तमान काल को लेकर ( शत) प्रत्यय हुआ है । और ( चलितम् ) में भूतकाल को लेकर (क्त) प्रत्यय हुआ है। और इस तरह (शत ) और (क्त ) ये दो प्रत्यय क्रमशः वर्तमान और भूतकाल के जप निर्देशक हैं-बोधक हैं तब वर्तमान का भूतकाल रूप से व्यवहार कैसे संभवित हो सकता है । अर्थात् नहीं हो सकता। इसलिये अन्यतीर्थिकजन (चलत् कर्म चलितम् ) ऐसा नहीं मानते हैं। ( जाव निज्जरिज्जमाणे अनिज्जिण्णे) यावत् निर्जीयमाणं अनिर्जीर्णम्) यहां यावद् पद से (उदीरिज्जमाणे अनुदीरिए२, वेइज्जमाणे अवेइए३, જે કર્મ વર્તમાનકાળે આત્મામાંથી ચાલી રહ્યું છે તેને ચાલી ચૂકયુ કહી શકાય નહીં, કારણ કે વર્તમાનમાં ચાલી રહેલા કર્મને ચાલી ચૂકેલા કર્મના કાર્યનું निष्पादन ४२वाने असमर्थ भानपामा मा छ, तथा “ चलत् ” यी २द्यु छ" वतभानाजन नि ४२ छ. भने “ चलितम् ” “ यासी यूयु छ" तेनी भा२३त सूताने निथाय छे. "चलत् 'म “चल " घातुने पतमानाने। “शत " प्रत्यय साम्य छे. मने " चलितम् " मा भूतजन। "क्त" प्रत्यय ये छे. २॥ रीते “शत " मने "क्त" प्रत्ययो अनुभ વર્તમાન અને ભૂતકાળના નિર્દેશક હોવાથી વર્તમાનનો ભૂતકાળરૂપે વ્યવહાર समपी 3 नही. तेथी अन्य तायि “ चलत् कर्म चलितम् ” मेवु भान नथी. "जाव निजरिज्जमाणे अनिज्जिण्णे" (यात्रे नी निश થઈ રહી છે તે અનિજીણું છે-તેની નિર્જરા થઈ ચૂકી એવું કહી શકાય નહીં माडी " यावत् " ५४थी “ उदीरिज्जमाणे अनुदीरिए २, बेहज्जमाणे अवेइए ३, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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