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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० ९ सू. ७ आधाकर्मस्वरूपनिरूपणम् ३५ वस्थापेक्षया वा 'किं उवचिणाई' किम् उपचिनोति प्रदेशबन्धापेक्षया निकाचनापेक्षया वेति प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा ' इत्यादि । ' गोयमा' हे गौतम ! 'आहाकम्मं णं भुंजमाणे' आधाकर्म खलु भुञ्जानः ‘समणे निग्गंथे' श्रमणो निग्रन्थः ‘आउयवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ' आयुष्कवर्जाः सप्त कर्मप्रकृती: 'सिढिलवंधणबद्धाओ ' शिथिलबन्धनबद्धाः, 'धणियबंधणबद्धाओ पकरेइ' हद बन्धनबद्धाः प्रकरोति, आधार्मिकाहारादिपरिसेवनेनायुष्कवर्जिताः सप्त कर्मप्रकतयो याः शिथिलबन्धनबद्धा आसन् ता दृढबन्धनबद्धाः प्रकरोतीति, 'जाव अणुपरियट्टइ' यावत् अनुपर्यटति - परिभ्रमति, यावत्पदेन- हस्सकालठिइयायी अपेक्षा से किसका चय करता है । ( किं उवचिणाइ) प्रदेशबंध की अपेक्षा अथवा निकाचना की अपेक्षा से किसका उपचय करता ? ये प्रश्न हैं । इनका उत्तर देते हुए भगवान कहते हैं कि (गोयमा!) हे गौतम ! (आहाकम्मं णं मुंजमाणे ) आधाकर्म दोष से दूषित आहार आदि उपभोग करता हुआ (समणे निग्गंथे ) श्रमण निर्मन्थ ( आउकम्मवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ) आयुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्म प्रकृतिओं को कि जो इसके पहिले (सिढिल बंधणषद्धाओ) शिथिलधन से बद्ध हुई थीं (धणियबंधणबद्धाओ) दृढबंधन से बद्ध बना लेता है । तात्पर्य कहने का यह है कि आधार्मिक आहार आदि के परिसेवन करने से सेवनकर्त्ता भ्रमण निर्ग्रन्थ आयुकर्म के सिवाय सातकर्म प्रकृतियों को जो शिथिलबंधनवाली थीं दृढबंधन से बद्ध करता है। (जाव अणुपरियह ) यावत् वह संसार में जन्ममरण द्वारा परिभ्रमण अपेक्षा अथवा निधत्त४२९ नी अपेक्षा शेन। यय ४२ छ ? " कि उवचिणाइ" પ્રદેશબંધની અપેક્ષાએ અથવા નિકાયની અપેક્ષાએ શેને ઉપચય કરે છે આ પ્રશ્નો પૂછળ્યા છે એ પ્રશ્નોના ભગવાન મહાવીર આ પ્રમાણે ઉત્તર આપે છે. “गोयमा! गौतम ! “आहाकम्म णं भुजमाणे " माथाभ होषयी इषित माहाशदिनो पा ४२ना२ " समणे निग्गंथे" श्रम निथ “आउकम्मवज्जाओ सत्तकम्मपगडीओ" मायुष्याभ सिवायनी सात प्रतियो भने तो पडसा " सिढिलबंधणबद्धाओ" शिथिस मधनथी मांधी उती "धणियबधणबद्धाओ" तेमने ते १८ ५ धनथी मांधेसी छ. तात्यय की છે કે આધાર્મિક આહાર વગેરેનો ઉપયોગ કરનાર શ્રમણ નિર્ગથ આયુષ્ય. કર્મ સિવાયની જે સાત કર્મ પ્રકૃતિ પહેલાં શિથિલ બંધવાળી હતી તેમને १८ मधनवाणी ४२ छ. "जाव अणुपरियहइ" (यावत् ) ते ससारमा भभ२ सहित वारंवार परिश्रम ४ ४२ छ. सही “जाव" (यावत्-पर्यंत) भ४४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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