________________
ን
भगवतीसूत्रे श्रेष्ठिकस्य च यावत अप्रत्याख्यानक्रिया क्रियते, तत्केनार्थेन भदन्त ! गौतम ! अविरतिं प्रतीत्य, तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते श्रेष्ठिकस्य च तनुकस्य च यावत् क्रियते इति ।। सू० ६॥ ____टीका-'भंतेत्ति' भदन्त इति हे भदन्त ! इत्येवं रूपेण भगवन्तमामंत्र्येति भावः, 'भगवं गोयमे ' भगवान् गौतमः 'समण भगवं महावीरं' श्रमणं भगवन्तं महावीर 'वंदइ नमसइ ' वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्यित्वा ‘एवं वयासी' एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् उक्तवान्। किमुक्तवानित्याह-' से पूर्ण भंते' तद् नूनं भदन्त ! ' सेट्ठियस्स य ' श्रेष्ठिकस्य होती है ? (हंता गोयमा सेटियस्स जाव अपचक्खाण किरिया कज्जइ) हां गौतम ! श्रेष्ठी से लेकर राजा तक की अप्रत्याख्यान क्रिया एकसी होती है। (से केणटेणं भंते !) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि श्रेष्ठी से लेकर राजा तक की अप्रत्याख्यान क्रिया एकसी होती है ! ( गोयमा ! अविरइं पडुच ) हे गौतम ! मैं जो ऐसा कहता हूं वह अविरति भाव को लेकर कहता हूं ( से तेगटेणं गोयमा ! एवं खुच्चइ, सेठियस्स य तणुयस्स य जाव कज्जइ) कि एक सेठ की यावत् राजा की अप्रत्याख्यान क्रिया एकसी होती।
टीकार्थ-(भंते त्ति) है भदन्त ! इस रूप से भगवान आमंत्रण करके (भगवं गोयमे) भगवान गौतम ने (समणं भगवं महावीरं) श्रमण भगवान महावीर को (वंदह नमसइ) वन्दना की और नमस्कार किया। (वंदित्ता नमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके ( एवं वयासी) फिर उन्हों ने उन से ऐसा प्रश्न पूछा ( से गूणं भंते !) हे भदंत ! (सेट्टियस्स) जिसका मस्तक त्याज्यान लिया शुभे४२२मी डाय छ! (हता गोयमा ! सेद्वियस्स जाव अपच्चक्खोण किरिया कज्जइ) , गौतम ! श्रेष्ठीथी सन रात सुधानी मप्रत्याज्यान या मेस२भी डाय छे. (से केणट्रेणं भंते !) भगवन् ! मा५ । કારણે એવું કહે છે કે શ્રેષ્ઠીથી લઈને રાજા સુધીની અપ્રત્યાખ્યાન ક્રિયા એક સરખી डायछ? (गोयमा ! अविरई पडुच्च) 3 गौतम! हु भवि२ति मापनी अपेक्षा मे ४ छु ( से तेणठेण गोयमा! एवं वुच्चइ, सेट्रियस्स तणुयस्स य कज्जइ) શ્રેષ્ઠી (શેઠ) થી લઈને રાજા સુધીની અપ્રત્યાખ્યાન ક્રિયા એકસરખી હોય છે.
टी-“भते ति" मापन ! मारीत समाधान, “ भगवगोयमे" सगवान गौतम "समण भगव महावीर " श्रमाय भगवान महावीरने "वदइ नमंसइ" ॥ ४२ भने नभ७।२ . " व दित्ता नमंसित्ता" ! नम२४॥२ ४ीने “ एवं वयासी" 20 प्रभारे प्रश्र पूछयो-" से गुण भंते !"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨