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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. ९ सू. ६ अवस्थाख्यानस्वरूपनिरूपणम् ३३५ रस य जाव अपच्चक्खाण किरिया कज्जइ, से केणट्टेणं भंते! गोयमा ! अविरइ पडुच्च से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं gras, सेट्ठियस्स य. तणुयस्स य. जाव कज्जइ ॥ सू० ६ ॥
छाया - भदंत इति भगवान् गौतमः श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते नम तवंदित्वा नमस्त्विा एवमवादीत् तद् नूनं भदन्त । श्रेष्ठिकस्य च तनुकस्य च कृपणस्य च क्षत्रियस्य च सममेवाप्रत्याख्यानक्रिया क्रियते ? हंत गौतम !
अप्रत्याख्यान आदि प्रकरण
कालास्यवेषिकपुत्र अनगार प्रत्याख्याम क्रिया से सिद्ध हुए यह बात अभी प्रकट की गई है सो इस प्रत्याख्यान क्रिया से विपरीत अप्रत्याख्यान किया है । इस अप्रत्याख्यान क्रिया को निरूपण करने के लिये अब सूत्रकार सूत्र कहते हैं- " भंते त्ति भगवं गोयमे " इत्यादि ।
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सूत्रार्थ - ( भंते ति भगवं गोयमे ! ) हे भदन्त ! ऐसा कह कर भगवान गौतम ने ( समणं भगवं ) श्रमण भगवान ( महावीरं ) महावीर को ( वन्द ) वन्दना की (नमंसह ) नमस्कार किया ( बन्दित्ता नर्मसत्ता ) वन्दना नमस्कार करके ( एवं बयासी ) फिर उन्हों ने उनसे इस प्रकार पूछा - ( से णूणं भंते ! सेट्ठिअस्स य तणुयस्स य खत्तियस्स तं समंचेव अप्पच्चक्खाण किरिया कज्जइ) हे भदन्त ! श्रेष्ठी, की दरिद्री की, कृपण की और क्षत्रिय राजा की अप्रत्याख्यान क्रिया क्या एकसी
અપ્રત્યાખ્યાન આદિ પ્રકરણ
કાલાસ્યવેષિકપુત્ર અણુગાર પ્રત્યાખ્યાન ક્રિયાથી સિદ્ધપદ પામ્યાં એ વાત તે હમણાં જ પ્રકટ કરવામાં આવી છે. ને પ્રત્યાખ્યાનની વિપરીત અપ્રત્યાખ્યાન ક્રિયા છે, તે અપ્રત્યાખ્યાન ક્રિયાનું નિરૂપણ કરવાને માટે હવે સૂત્રકાર
सूत्र उडे छे - " भंते ! त्ति भगवं गोयमे !" इत्यादि.
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सूत्रार्थ – (भते त्ति भगवं गोयमे ! ) हे भगवन् ! मेवु उहीने लगवान गौतभे (समण भगव' ) श्रमायु भगवान ( महावीर ) महावीरने ( वंदइ ) 'हा पुरी (नमंसइ) नमस्४२ र्या. ( व दित्ता नर्मसित्ता ) वडा नमस्मार ने ( एवं क्यासी) तेभो भगवान महावीरने या अभाशे पूछयुं ( से णूणं भंते ! सेट्ठियरस य त यस् य किबणस्स य खत्तियरस य सम चेव अप्पच्चखाण किरिया कज्जइ ) हे लगवन् ! श्रेष्ठिनी, हरिद्रीनी, पानी भने क्षत्रिय-रानी अप्र
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨