SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - २३० भगवतीसूत्रे असंसारसमापनकाश्च, 'तत्थ णं जे असंसारसमावण्णगा' तत्र खलु ये असंसारसमापनकाः, 'तेणं सिद्धा' ते खलु सिद्धाः, ' सिद्धाणं अवीरिया' सिद्धाः खलु अवीर्याः, करणवीर्यस्याभावेन सिद्धाः अवीर्या इति कथ्यते, 'तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णया' तत्र खलु ये ते संसारसमापनकाः संसारिणः ' ते दुविहा पन्नत्ता' ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, ' तं जहा ' तद्यथा-'सेलेसीपडिवण्णगाय' शैलेशीप्रतिपन्नकाश्च अशैलेशीप्रतिपन्नकाश्च, शीलस्येशः शीलेशः सर्वसंवरणरूपचारित्रवान् तस्येयमवस्था शैलेशी, अथवा शैलानां पर्वतानामीश इति शैलेशो मेरुस्तस्येव याऽवस्था सा शैलेशी स्थिरतासाधर्म्यात् , स्थिरता च सर्वथा योगनिरोधेण अ, इ-उ-कल इति पंचहस्ताक्षरोच्चार कालप्रमाणा, तां प्रतिपन्ना ये ते शैलेशीप्रति कहे गये हैं । वे इस प्रकार से हैं-एक संसारसमापनक और दूसरे असंसारसमापनक ( तत्थ णं जे असंसार समावण्णगा से णं सिद्धा) इनमें जो असंसारसमापनक हैं वे सिद्ध हैं। (सिद्धाणं अवीरियो ) ये सिद्ध करणवीर्य के अभाव से वीर्य विनाके हैं ऐसे कहे गये हैं । (तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णया ते विहा पन्नत्ता) तथा जो संसारसमापन्नक जीव हैं वे दो प्रकारके कहे गये हैं। (तं जहा ) वे दो प्रकार ये हैं(सेलेसी पडिवण्णगा य असेलेसी पडिवण्णगा य ) एक शैलेशीप्रतिपन्नक और दूसरे अशैलेशी प्रतिपन्नक । जो शीलके ईश होते हैं वह शीलेश कहे गये हैं-अर्थात् सर्वसंवरणरूप चारित्रवाले ही शैलेश होते हैं। इन शैलेशों की जो अवस्था है वह शैलेशी है । अथवा पर्वतों का ईश जो सुमेरु पर्वत है उस पर्वत के जैसी अवस्था का नाम शैलेशी है। उसकी स्थिरता के सामर्थ्य से यह शैलेशी अवस्था कही गई है । यह स्थिरता જીવ બે પ્રકારના હોય છે-(૧) સંસાર સમાપન્નક અને (૨) અસંસાર સમાપન્નક (तत्थणं जे असंसारसमावण्णगा से णं सिद्धा) मा २ असा२ समापन waतमन सिद्ध छ. ( सिद्धाण अवीरिया ) ते सिद्धाने ४२६४वीय ने मला वीयरहित ४. छ. ( तत्थणं जे ते संसारसमावण्णया ते दुविया पण्णता) तथा ससार समापन्न व छे ते मे प्रा२ना हा छ, (त जहा) ते मा प्रमाणे छ-(सेलेसो पडिवण्णगा य) (शैलेशी-प्रतिपन्न भने (૨) અશૈલેશી વ્રતિપનક સર્વ સંવરરૂપ ચારિત્રવાળા જીવોને જ શીલેશ કહે છે. તે શીલેશોની જે અવસ્થા તેનું નામ શેલેશી છે. અથવા..પર્વતેને ઈશ જે સુમેરુ પર્વત છે, તે સુમેરુના જેવી અવસ્થાને રિલેશી અવસ્થા કહે છે. સ્થિરતાની અપેક્ષાએ સમાનતા હોવાથી એવી અવસ્થાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy