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________________ २१२ भगवती सूत्रे न्ताकृष्टवाण पुरुषस्यान्यः कश्चित् पुरुषः पृष्ठदेशादागत्य स्वकीयखङ्गेन मस्तकमपहरेदिति भावः, 'सेय उस चेषुः मृगवधायानुसन्धीयमानः पूर्वपुरुषसंबन्धी बाणः 'ताए चैव पुव्वायामणयाए तथा चैव पूर्वायामनतया पूर्वाकर्षणतया 'तं मियं विधेज्जा' तं मृगं विध्येत् यदर्थं पूर्वपुरुषेणैतावान् प्रयत्नः कृतस्तं तादृशमेवमृगं यदि स इषुर्मारयेत् तद। ' से णं भंते ' स खलु भदन्त ! मृगवधकः 'पुरिसे ' पुरुषः 'किं मिय वेरेणं- पुट्ठे' किं मृगवैरेण स्पृष्टः वा 'पुरिसवेरेणं पुढे ' पुरुषवैरेण स्पृष्टः, किम् ? बाणेन मृगस्य मरणं जातमसिना च मृगवधक पुरुषस्य, तत्र मृगवधजनितपापेन धनुर्धारिपुरुषस्य स्पर्शो भवेत् खङ्गधारिपुरुषस्य वेति । " अपने हाथकी तलवार से उसका शिर काट देवे अर्थात्-धडसे उसके शिरको अलग कर देवे । ऐसी स्थिति में ( से य उसू) मृगके वध के लिये धनुष पर आरोपित हुआ वह बाण (ताए चैव पुन्वागामणयाए) पहिले से ही आकर्षित होने के कारण उछल कर ( तं मियं विंधेज्जा ) उस मृग को वेध देवे - अर्थात् जिस मृगको मारने के लिये वह पहिला व्यक्ति उस वाण का धनुष पर आरोपित कर और उसे कर्णान्त तक खे च कर खडा हुआ था उसी मृग को धनुष से छूट कर वह बाण मार डाले तो ( से णं भंते ! पुरिसे किं मियवेरेणं पुढे पुरिसवेरेणं पुढे ? ) वह तलवार से उस मृगघातक के शिर का छेदन करने वाला मनुष्य मृग के वैर से - पाप से स्पृष्ट होगा कि पुरुष के वैर से पाप से स्पृष्ट होगा ? अर्थात् उस समय बाण से मृग का मरण हुआ और तलवार से पुरुष का मरण हुआ तो ऐसी स्थिति में उस धनुधारी व्यक्ति को मृग के मरने का पाप लगेगा या उस पुरुषघातक को मृग के ખે'ચીને તીર ચડાવીને ઉભેલા તે પુરુષની પાછળથી આવીને કાઇ પુરુષ પાતાની तसवारथी तेनुं भाथु धडथी अलग उरी नाचे. पशु से परिस्थितिमां ( से य उसू) भृगने भावाने माटे धनुष पर थडावेतुं ते माशु (ताए चैव पुव्वाया मणयाए) पडेबेथील आर्षित होवाने अखे छूटीने (तं मियं त्रिंधेज्जा) ते भृगने वींधी नाथे तो (से णं भंते ! पुरिसे किं मियवेरेणं पुठे पुरिसवेरेणं पुढे ? ) तो डे ભગવન્ ! તે મૃગધાતકનું માથું તલવારથી કાપી નાખનાર માણસને તે भृगહત્યાનું પાપ લાગશે કે તીર ચડાવીને મૃગને વીંધવાને માટે તૈયાર થયેલા પુરુષને તે મૃગહત્યાનું પાપ લાગશે ? તાત્પ એ છે કે મૃગને મારવાને તૈયાર થયેલા પુરુષને તેનું પાપ લાગશે કે તે પુરુષને તલવારથી મારી નાખનારને મૃગહત્યાનું પાપ લાગશે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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