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________________ २०६ भगवतीसूत्रे नूमगहनगहनविदुर्गपर्वतपर्वतविदुर्गवनानां ग्रहणम् । एवमन्यत्रापि यावत्पदेन ज्ञातव्यम् । ' मियवित्तिए ' मृगवृत्तिका, मृगैवृत्तिजीविका विद्यते यस्य स मृगवृत्तिकः, 'मियसंकप्पे' मृगसंकल्पः, मृगेषु संकल्पो वधनिश्चयो विद्यते यस्य स मृगसंकल्पः, 'मियपणिहाणे' मृगप्रणिधानः, मृगवधाय दत्तचित्तः, 'मिय वहाए गंता' मृगवधाय गंता=गमनशीलः 'एते मिय त्ति काउं' एते मृगा इति कृत्वा, मृगवधमुद्दिश्य कच्छाद्रिप्रदेशं प्राप्य तत्र च मृगान् दृष्ट्वा एतेषामेव वधायाहमत्रागतोस्मि एतानेवान्वेषयामि एते च भाग्यान्मे मिलिता इति मनसा निश्चित्येत्यर्थः, 'अण्णयरस्स' अन्यतस्य, अनेकमृगसमुदाये वधाय यस्य कस्यचित् 'मियस्स वहाए ' मृगस्य वधाय 'उसुं' इषुम्-बाणम् - णिसिरह' निसृजति, मृगं लक्षीकृत्य प्रक्षिपति, ' तओ णं भंते !' ततः खलु भदन्त ! ततः मृगोपरि पाणप्रक्षेपानन्तरम् , ' से पुरिसे' स पुरुषः वधकः ‘कइकिरिए ' कतिक्रियः, एतादृशपापकर्मकरणात् तं तादृश्यः कियत्यः क्रिया:स्पृशन्तीति भावः । भगवानाह -'गोयमे 'त्यादि । ' गोयमा' हे गौतम ! ' सियतिकिरिए ' स्यात् त्रिक्रियः वणविदुग्गंसि वा गंता) मृगों को मारने के लिये कच्छ में यावत् अनेक जातिवाले वृक्षोंके वनमें गया वहां जा कर (एते मिपत्तिकाउं) येही मृग हैं इन्हे ही मारने के लिये मैं यहां आया हूं-इन्हें ही खोज रहा था ये मुझे भाग्य से मिल गया हैं । ऐसा मन से निश्चय करके-विचार करके (अण्णयरस्स मियस्स वहाए) वह मृगों के समूह में वर्तमान किसी एक मृग को मारने के लिये (उसु निसिरह) अपना बाण छोड़ता है, अर्थात् किसी एक मृगको लक्ष्य कर उस पर अपना बाण चलाता है। (तओ गं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए ?) तो हे भदन्त ! ऐसा पुरुष मृग पर पाण प्रक्षेप के बाद कितनी क्रियाओंसे युक्त माना जाता है । (गोयमा ! ४७मा (नहीन न १२ये मावेan 340 प्रदेशमा ) यावत् भने। तनi gaiवा पनमा गयो. (मडी “ यावतू " ५४थी त्रीत सूत्रमा ता. aai mui स्थानी अड ४२५ ) त्याने ( मियत्ति काउ') मा भृग २४ છે. હું તેમને મારવાને માટે આવ્યો છું-હું તેમની જ શોધમાં હતા. મને सहलाये तेभनी प्राति छ, मेवो मनमा विया२ ४शन ( अण्णयररस मियस्स वहाए) भृगाना समूडमान ४ भृगने भावाने भाटे ( उसुं निसिरइ ) पोतार्नु भा छ। छ-४ मे भृगने लक्ष्य रीती२ छोडेछ. ( तओ गं भंते ! से पुरिसे कइ किरिए ? ) त मावन् ! ते पुरुषने सी जियावाग। ४ही शय ! ( गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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