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________________ १६८ भगवतीसूत्रे गतः पुत्र जीवोपि जागति-किम् 'मुहियाए सुहिए भवइ ' मुखितायां मुखितो भवति किम् ? ' दुहियाए दुहिए भाइ' दुःखितायां दुःखितो भवति किमिति प्रश्नः । भगवानाह-'हते 'त्यादि । 'हंता गोयमा' हन्त हे गौतम ! 'जीवे णं गभगए समाणे' जीवः खलु गर्भगतः सन् ' जाव दुहियाए दुहिए भवइ' यावत् दुःखितायां दुःखितो भवति, गर्भगतस्य जीवस्य सर्वाऽपि क्रिया मातुरनुसारिण्येव भवेदिति भावः । 'अहे णं' अथ खलु नवमासपर्यन्तं गर्भ वासानन्तरम् पिसवणकालसमयसि' प्रस्रवनकालसमये-प्रभूतिसमये 'सीसेण वा पाएहि वा आग. च्छति ' यदा शोर्षेण वा पादाभ्यां वा आगच्छति तदा 'समं आगच्छइ 'सममागच्छति-सम-सुखेन आगच्छति । यदा-'तिरियमाच्छइ ' तिर्यगागच्छति, वक्रक्या वह भी सो जाता है ? (जागरमाणीए जागरइ) तथा माता के जग जाने पर क्या वह भी जग जाता है ? (सुहियाए सुहिए भवह दुहियाए दुहिए भवह ) अथवा जब माता सुखी होती है तब वह क्या सुखी होता है ? जब माता दुःखी होती है तब वह गर्भगत जीव क्या दुःखी होता है ? ( हंता गोयमा ! गभगए समाणे जाव दुहियोए दुहिए भवई) हां गौतम गर्भगत जीव यावा माताके दुःखित होनेपर दुःखीहोता है । तात्पर्य कहने का यह है कि गर्भगत जीव की समस्त क्रियाएँ माता की क्रिया अनुसार ही होती हैं। (अहे णं पसवणकाल समयंसि) जीव जष नौ माह तक गर्भ में रह चुकता है तब उसके बाद प्रसूति समय में (सीसेण वा पाएहिं वा ) वह जीव यदि मस्तक से अथवा दोनों पैरों से ( आगच्छइ ) बाहर निकलता है तो ( सम्म आगच्छइ ) ) अच्छी तरह से-विना किसी कष्ट के बाहर निकल आता है। यदि वह (तिरिonय छ ? (जागरमाणीए जागरइ) शु माता नये. त्यारे ते पy all onय छ ? (सुहियाए सुहिए भवइ, दुहियाए दुहिए भवइ) शुभता भी थाय त्यारे सलमा રહેલે જીવ દુઃખી થાય છે? અને માતા સુખી થાય ત્યારે શું તે સુખી થાય છે? उत्तर-(हंता गोयमा !) डा, गौतम ! (जीवेणं गभगए समाणे जाव दुहियाए दुहिए भवइ) गलभा२४०१ भुअरीने २९ छे. महथी सई ने भाताना દુઃખે દુઃખી થવા સુધીની બધી ક્રિયાઓથી યુક્ત રહે છે. તાત્પર્ય એ છે કે ગર્ભમાં २डस वानी ॥धी ठिया भातानी ठिया प्रमाणे १ थाय छे. (अहे णं पसवणकालसमय सि) ०१ सवान भास सुधी गर्ममा २ छ-त्यारे पछी असतिना समये 'सीसेण वा पाएहिं वा' ने ते भस्तथी अथवा भन्ने पाथी (आगच्छइ) महार ना छ तो ( सम्म आगच्छइ) ४ पण तनी भुश्सी विना पार नीले छ. ५५ न्ने (तिरियमागच्छइ) तिरछ। "मी" શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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