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भगवतीसूत्रे गर्भस्थजीवो वैक्रियलब्धिप्रातसेनया शत्रुसेनया सह संग्रामं करोति तादृशो जीवः ‘ अत्थकामए ' अर्थकामकः-अर्थे द्रव्ये कामो वांछा मात्रं यस्य स अर्थकामकः, अर्थमुद्दिश्य संग्राम संपादयतीत्येवं रूपेण सर्वत्र योजनीयमिति, 'रज्जकामए' राज्यकामकः, राज्यग्रहणेच्छावानित्यर्थः ‘भोगकामए' भोगकामकः, भोगा: गन्धरसस्पर्शाः, तेषु कामः वाञ्छा यस्य स तथा। ' कामकामए' कामकामकः, कामौ शब्दरूपौ तयोर्वान्छा यस्य स तथा, 'अत्थकंखिए ' अर्थकांक्षितः, अर्थे कांक्षा-गृद्धिः संजाता यस्य स अर्थकांक्षितः, 'रज्जकंखिए' राज्य कांक्षितः, वैक्रियसमुद्घात करता है । उससे वह चतुरंगी सेना को बना लेता है
और उससे शत्रुसेना के साथ संग्राम करता है । ऐसा गर्भगत जीव नरक गमन योग्य कर्म का बंध करता है ऐसा संभव होता है। यहां सूत्र में जो " वोरियलद्धीए, वेउब्धियलद्धीए " ऐसा तृतीयाविभक्त्यन्त पाठ रखा गया है सो उसके स्थान पर प्रथमाविभक्त्यन्त भी वह पाठ रखा जा सकता है, तब उसका ऐसा अर्थ होगा कि गर्भगत जो जीव है वह वीर्यलब्धिवाला और वैक्रियलब्धिवाला होकर संग्राम करता है। ( से जीवे ) ऐसा वह जीव-मर्भस्थ जीव-जो वैक्रियलब्धिद्वारा प्राप्त अपनी सेना द्वारा शत्रु सेना के साथ (अत्थकामए, रज्जकामए, भोगकामए, कामकामए) द्रव्य में वाञ्छावाला बनकर, राज्यग्रहण करने की इच्छावाला बनकर, भोग-गन्ध, रस, स्पर्श इनमें वाञ्छावाला बनकर, काम-शब्द और रूप की वांछा वाला बनकर, ( अत्थकंखिए) अर्थ में गृद्धि वाला बनकर, ( रज्जकंखिए ) राज्य में गृद्धि वाला बनकर, (काम
પ્રદેશને ગર્ભ પ્રદેશમાંથી બહાર કાઢે છે. અને વિકિય સમુઘાત કરે છે. પછી તે ચતુરંગી સેના બનાવી લે છે. અને તેની મારફત શત્રુ સેના સાથે યુદ્ધ કરે છે. એ ગર્ભમાં રહેલ જીવ નરકમાં જવા ચોગ્ય કર્મને બંધ બાંધે તે समावित छ. सही सूत्रमा “ वीरियलद्धीए, वे उब्वियलद्धीए " मेवांत्री વિભક્તિનાં પદો મૂક્યાં છે તેમની જગ્યાએ પહેલી વિભક્તિનાં પદે પણ મૂકી શકાય છે ત્યારે તેને અર્થ આ પ્રમાણે છે ગર્ભમાં રહેલ જે જીવ છે તે વીર્ય सन्धिवाण मन वैठियसलवाणे ने सयाम ३२ छ ( से णं जीवे ) मेवा તે ગર્ભમાં રહેલ જીવ વૈકિયલબ્ધિ વડે બનાવેલી પિતાની સેના વડે શત્રુની सेना साथे ( अत्यकामए, रज्जकामए, भोगकामए, कामकामए ) धननी वासनावा। थन, Arय भेजवानी छावाको थने, सार 14, २२, २५ । लाय. વવાની વાસનાયુક્ત બનીને, કામ-શબ્દ અને રૂપની વાસનાથી યુક્ત બનીને,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨