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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.१७.६ सू०१ सूर्यदर्शनवक्तव्यता भवन्ति किमिति प्रश्नः, नेत्युत्तरम् , उद्देशकपरिसमाप्तिश्चेति संक्षेपतो विषयसंग्रहः । ___ पञ्चमोद्देशकं निरूप्य षष्ठोद्देशकः प्रारभ्यते, अस्य पूर्वेण सहायं सम्बन्धःपञ्चमोद्देशकस्यान्तिमसूत्रेषु' असंखेज्जेसु णं भंते ! जाव जोइसियावासेसु" तथा 'संखेज्जेसु णं भंते ! वेमाणियावाससयसहस्सेसु' इत्यादि पठितम् , एतेषु सूत्रेषु ज्योतिष्कविमानावासाः प्रत्यक्षमेवेति तद्गतसूर्यदर्शनमाश्रित्याह, तथा 'जावं ते' इत्यादि यत् आदिगाथायामुक्तं तदेव दर्शयितुमाह-'जावइयाओ' इत्यादि। ___ मूलम्-जावइयाओ णं भंते! उवासंतराओ उदयंते सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ,अस्थमंते वि य णं सूरिए तावइयाओ चेव उवासंतराओ चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ ? हंता गोयमा! उदाहरण का प्रदर्शन । सूक्ष्म स्नेहकाय गिरते हैं क्या? यह प्रश्न । हां गिरते हैं ऐसा उत्तर । वे स्नेहकाय दीर्घकाल तक क्या स्थित रहते हैं? ऐसा प्रश्न, नहीं रहते हैं ऐसा उत्तर। उद्देशक की परिसमाप्ति । पंचम उद्देशक का निरूपण करके अब सूत्रकार छट्ठा उद्देशक प्रारंभ करते हैं । इसका पूर्व उद्देशक के साथ संबंध इस प्रकार से है पंचम-उद्देशक के अन्तिम सूत्रो में "असंखेजेसु णं भंते ! जाव जोइसियावासेसु" तथा "संखेजेसु णं भंते ! वेमाणियावाससयसहस्सेतु" इत्यादि कहा गया है सो इन सूत्रोक्त ज्योतिष्क विमानावास प्रत्यक्ष ही हैं और उन्हीं विमानावासों में से एक विमानावास में रहनेवाला सूर्य भी है सो उस सूर्यके दर्शन को आश्रित करके कहते हैं, तथा "जावंते" इत्यादि जो आदि गाथामें कहा गया है उसे दिखाने के लिये सूत्रकार यह आदि सूत्र कहते हैं- 'जावइयाओ णं भंते !" इत्यादि। કાય લાંબાકાળ સુધી વિદ્યમાન રહે છે તેને નકારમાં ઉત્તર, ઉદ્દેશકની પરિ. સમાપ્તિ. આ પ્રમાણેના વિષયોને અહીં છઠ્ઠા ઉદ્દેશકમાં વિચાર કરવામાં આવેલ છે. પાંચમાં ઉદ્દેશકનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર છઠ્ઠા ઉદ્દેશકની શરૂઆત કરે છે. તેને આગળના ઉદ્દેશકની સાથે આ પ્રકારનો સંબંધ છે– પાંચમાં ઉદ્દેશકના छया सूत्रामा " असखेज्जेसु णं भंते ! जाव जोइसियावासेसु" तथा " संखेज्जेसुणं भंते ! वेमाणियावाससयसहस्सेसु" त्याहि थन माव्युं छे. ते सूत्रमा ४५ પ્રમાણે તિષ્ક દેના વિમાનાવાસે પ્રત્યક્ષ જ છે. અને તે વિમાનાવાસમાંના એક વિમાનાવાસમાં રહેનારે સૂર્ય પણ છે તેથી તે સૂર્ય દર્શનને भाश्रय सधने छ. तथा “जावंते" त्याने २३मातनी ॥थामा छ तमतावाने भाटे सूत्र४२ २ममाहि सूत्र छ.-"जावइयाओ णं भंते !" त्याहि. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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