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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १ उ० ७ सू. ४ गर्भ स्वरूपनिरूपणम् १५३ मिजा' केसमंसरोमनहे' अस्थि अस्थिमज्जाकेशश्मश्रुरोमनखाः, गर्भस्थितजीवस्य शरीरे मांसशोणितमस्तुलुङ्गानि मातुःसकाशादागतानि तथा अस्थ्यस्थिमज्जा केशश्मश्रुरोमनखाः पितुः सकाशादागतानि भवन्तीति भावः । गर्भगतस्य जीवस्य मातृपित्रवयवप्राप्तशरीरं-कियत्कालपर्यन्तं तिष्ठतीत्यावेदयितुमाह-'अम्मापिइए' इत्यादि । ' अम्मापिइए णं भंते सरीरए ' अम्बापैतृकं खलु भदन्त ! शरीरकं 'केवइयं-कालं संचिट्ठइ ' कियत्कालं संतिष्ठते, हे भदन्त !, भगवानाह-'गोयमें त्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जावइयं से कालं' यावन्तं कालं तस्य 'भवधारणिज्जे सरीरए' भवधारणीयं शरीरम् ' अव्वावन्ने भवइ' अव्यापन्नं भवति, भवधारणीयं-भवधारणप्रयोजन मनुष्यादि भवोपग्राहकमित्यर्थः, 'अव्वा. तीन कहे गये हैं-वे इस प्रकार से है-१ मांस, २ शोणित (रुधिर) और तीसरा मस्तक के भीतरस्थित स्निग्ध पदार्थविशेष जिसे " भेजा" कहते हैं । ( कइ णं भंते ! पिइअंगा पन्नत्ता) हे भदन्त ! पिताके अंग कितने कहे गये है ? (गोयमा ! तओ पिइअंगा पन्नत्ता) हे भदन्त ! पिताके अंग तीन कहे गये हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं (अद्विमिज्जा केसमंसु रोमनहे ) हाड, अस्थिमज्जा केश-श्मश्रु-रोम और नख । तात्पर्य यह है कि-गर्भस्थित जीव के शरीर में मांस, शोणित और भेजा ये तीन माता से प्राप्त होते हैं और हाड १, अस्थिमज्जा २, केश, श्मश्रु, रोम और नख ३, ये पिता से प्राप्त होते हैं। गर्भगत जीव का माता पिता के अवयवों से प्राप्त शरीर कितने कालतक रहता है ? इस बात को अब सूत्रकार प्रश्नोत्तरपूर्वक कहते हैं-( अम्मापिइए णं भंते ! सरीरए केवइयं कालं संचिट्ठइ ? ) हे भदन्त ! माता पिता के अवयवों से प्राप्त गभस्थित जीव का शरीर कितने कालतक ठहरता है ? (गोयमा! जावइयं से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अव्वावन्ने भवइ एवतियं कालं पिता २५ डोय छे-(तं जहा) ते २0 प्रमाणे छ-( अद्वि-अद्विमिजा,केसमंसरोमनहे) ४i, मस्थित, श-श्मश्रुशम भने नप. वान। ભાવાર્થ એ છે કે ગર્ભમાં રહેલ જીવના શરીરમાં માંસ, રુધિર અને મગજ भात। त२३०ी प्रास थाय छ भने (१) ४४i, (२) अस्थिम मन (3) श, શ્યથુ રેમ અને નખ પિતા તરફથી પ્રાપ્ત થાય છે. માતા પિતાના અવયથી પ્રાપ્ત એવું ગર્ભમાં રહેલ જીવનું શરીર ક્યાં સુધી રહે છે–એ વાતને સૂત્રકાર प्रश्नोत्तर १ मा छ-( अम्भापिइए णं भंते ! मरीरए केवइय कालं संचिद्रह १) હે ભગવન્! માતા પિતાના અવયવોથી પ્રાપ્ત થયેલું ગર્ભમાં રહેલ જીવનું શરીર । समय सुधीट छ ? ( गोयमा ! जावइय से कालं भवधारणिज्जे सरीरए अव्वावन्ने भवइ एवइयं कालं संचिट्ठइ) गौतम ! च्या सुधा तेनुं अवधार. भ० २० શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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