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________________ १५० भगवतीसूत्रे 'पुत्तजीवरसहरणी' पुत्रजीवरसहरणी, एते द्वे नाड्यौ स्तः, तयोर्मध्ये आधा या मातृजीवरसहरणी सा, 'माउनीवपडिबद्धा पुत्तजीवफुड़ा' मातृजीवपतिबदा पुत्रजीवस्पृष्टा, इयं रसग्राहिका नाडी माजीवप्रतिबद्धा-मातृजीवेन सह संबद्धा, तथा सव नाड़ी पुत्रजीवस्पृष्टा इति पुत्रजीव स्पर्शिका भवति, इह प्रतिबद्धता च गाढसंबन्धः, मावजीवस्यांशरूपत्वात्तस्याः, स्पृष्टता च संबन्धमात्रम, यतो न सा पुत्रजीवस्यांशरूपा, मातृजीवप्रतिवद्धा केवलं पुत्रजीवं स्पृशत्येवेति 'तम्हा आहारेई' तस्मादाहरति यस्मात् एवं तस्मात् कारणात् मातृजीवमतिबद्धया रसहरण्या नाडया पुत्रजीवेन सह स्पर्शनाद् गर्भगतो जीव आहरति आहारं को हरण करने वाली नाडी नाभिनाल होता है। क्योंकि माता द्वारा उपभुक्त आहार का रस गर्भगत जीव को इसी के द्वारा मिलता रहता है इसलिये "रसो हियते-आदीयते यया सा रसहरणी" ऐसी रसहरणी शब्द की व्युत्पत्ति टीकाकार ने की है। (पुत्तजीवरसहरणी) पुत्रजीवरसहरणी-यह भी एक नाड़ी होती है । इस तरह ये दो नाडियां हैं। इनके बीचमें जो आदि की नाडी मातृजीवरस हरणी है वह ( माउजीवपडिबद्धा ) मातृजीव के साथ संबद्ध रहती है, और पुत्र जीव के साथ स्पृष्ट होती है । प्रतिबद्धता शब्द का तात्पर्य गाढसंबंध से है, क्यों कि वह प्रतिबद्धता मातृजीव के अंशरूप होती है। और स्पृष्टता का तात्पर्य सामान्य संबंध से है, क्योंकि वह स्पृष्टता पुत्र जीव के अंशरूप नहीं होती है। मातृजीव प्रतिबद्धा नाडी केवल पुत्र जीवका स्पर्श ही करती है । (तम्हा आहारेइ ) इसलिये वह आहार करता है । तात्पर्य यह है कि मातृजीवप्रतिबद्ध रसहरणी नाडी पुत्र जीव નાડી–નાભિનાલ-માતા વડે આહાર રૂપે ગ્રહણ કરાયેલ આહારને રસ ગર્ભસ્થા तेनालिनास पडे भेजते। २ छ. तेथी “ रसो हियते-आदीयते यया सा रसहारणी " वी २सडी शहनी व्युत्पत्ति टी॥२ ४३ छ. (पुत्तजीवरसहरणी) पुत्र०१२स २६॥ी-ते ५४४ नाडी डाय छे. तमांनी पडसी भातृ०१२सडणी नाडी (माउजीवपडिबद्धा) माताना व साथे બંધાયેલી રહે છે. અને પુત્રના જીવ સાથે પણ પૃટ હોય છે. પ્રતિબદ્ધપણુ એટલે ગાઢ સંબંધ. કારણ કે તે પ્રતિબદ્ધપણું માતૃજીવના અંશરૂપ હોય છે. સ્પષ્ટતા એટલે સામાન્ય સંબંધ કારણ કે તે પૃષ્ટતા પુત્રજીવના અંશ રૂપ હોતી નથી. માતાના જીવ સાથે બંધાયેલી નાડી માત્ર પુત્રના જીવને સ્પર્શ ५ ४२ छ. (तम्हा आहारेइ) तेथी ते माहा२ ४२ छ. ४ानुपयो छ માતૃજીવપ્રતિબદ્ધરસહરણ નાડી પુત્ર જીવની સાથે સ્પર્શ કરે છે, તે કારણે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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