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भगवतीसूत्रे हारमाहर्त्तम् , हे भदन्त ! गर्भस्थो जीवः मुखेनाहारमाहत समर्थों भवेदिति प्रश्नः। भगवानाह–'गोयमे 'त्यादि । ‘गोयमा' हे गौतम ! 'णो इणढे समटे' नायमर्थः समर्थः, गर्भगतो जीवो मुखेन कावलिकमाहारं नाहरतीति । तत्कारणं पृच्छति-से केणटेणं' तत्केनार्थेन, केन कारणेन हे भदन्त ! एव मुच्यते यत् गर्भगतो जीवो कावलिकमाहारमाहत्तुं न समर्थ इति । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जीवेणं गभगए समाणे सबओ आहारेइ' जीवः खलु गर्भगतः सन् सर्वतः सर्वात्मना आहरति, 'सव्वओ परिणामेइ' सर्वतः सर्वात्मना परिणमयति 'सबओ उस्ससइ ' सर्वतः सर्वात्मना उच्छ्षसति, श्वास गृह्णाति, 'सबओ निस्ससह सर्वतो निःश्वसति, सर्वात्मना श्वासं मुश्चति, 'अभिक्खणं आहारेइ' अभीक्ष्णमाहरति पुनः पुनराहरतीत्यर्थः, ' अभिक्खणं परिणामेई' आहरित्तए) हे भदन्त ! गर्भगत जीव क्या मुख से कवलरूप निवाला आहार करने में समर्थ है ? ( गोयमा ! णो इणटे समढे) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् गर्भगत जीव मुख से कावलिक आहार लेने में समर्थ नहीं है । ( से केणणं० ) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हो कि गर्भगत जीव कावलिक रूप आहार लेने में समर्थ नहीं है ? (गोयमा ! जीवे णं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ) हे गौतम ! गर्भ में रहा हुआ जीव सर्वात्मना खाता है (सव्वओ परिणामेह) खाए हुए को सर्वात्मना परिणमाता है । ( सव्वओ निस्ससइ) सर्वात्मना वह श्वास लेता है (सवओ निस्ससइ) सर्वात्मना वह निःश्वास लेता है, अर्थात् सर्वात्मना वह श्वास को छोड़ता है। (अभिक्खणं आहारेइ ) घार २ वह आहार लेता है। (अभिक्खणं परिणामेह) आहार' आहरित्तए १ ) पन !शुगलमा २ ७१ भुमयी ४ाडार (ोणीय! १३ मा ते) अड) ४२वाने समर्थ डाय छे ?( गोयमा ! णो इणट्टे समडे) गौतम! ते म ५२२५२ नथी, मेटले गमभा २९ व भुपथी ४१साड.२ सेवाने समय डात नथी. (से केणद्वेणं) भगवन् ! २५ ॥ કારણે એવું કહે છે કે ગર્ભમાં રહેલો જીવ કવલ આહાર ગ્રહણ કરવાને સમર્થ डात नथी ? (गोयमा ! जीवेणं गब्भगए समाणे सव्वओ आहारेइ ) गौतम ! गलमा २ १ सव यात्मप्रश। 43 पाय छे. (सव्वओ परिणामेइ) मासा सा माहारने सवयात्मप्रश। 3 परिणभाव छ. (सव्वओ उस्ससइ) स यात्मप्रदेश १ ते श्वास से छे. (सबओ निस्ससइ) भने सब मात्मप्रश! 43 निश्वास छ। छे. (अभिक्खणं आहारेइ) ते पावा२ मा २
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨