SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૦૮૬ भगवतीसूत्रे णसमुद्रादिकाः समुद्राः एवं सौधर्मः कल्पो यावत् ईषत्माग्भारा पृथिवी स्पृशति ते सर्वेऽपि असंख्येयभागं स्पृशन्ति शेषाः प्रतिषेद्धव्याः एवमधर्मास्तिकायः एवं लोकाकाशोऽपि । गाथा-पृथिव्युदधी घन तनुकल्पा ग्रैवेयकानुत्तरौ सिद्धिः। संख्येयभागम् अन्तरेषु शेषा असंख्येयाः ॥ ॥ द्वितीयशतके दशमो द्देशकः समाप्तः ॥ ॥ द्वितीयं शतकं समाप्तम् ॥ समुद्दा) जबृद्धीप आदिक द्वीप, और लवणसमुद्र आदिक समुद्र ( एवं सोहम्मे कप्पे, जाव इसीपभारा पुढवी ) सौधर्मकल्प यावत् ईषत्प्राग्भोरापृथिवी, ये सब हे भदन्त ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग का (फुसइ) स्पर्श करते हैं तो इसका उत्तर यह है कि (ते सव्वेऽवि असंखेजहभागं फुसंति ) ये सब धर्मास्तिकाय के असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं । ( सेसा पडिसेहियव्वा ) अवशिष्ट भागों के स्पर्श करने का निषेध करना चाहिये । ( एवं अहमत्थिकाए एवं लोगागासे वि) इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय और लोकाकाश को भी जानना चाहिये । गाथा (पुढवोदही घगतणूकप्पा गेवेजणुत्तरासिद्धी, । संखेजइभागं अंतरेसु सेसा असंखेज्जा ) पृथिवी, उधो, धनवात, तनुवात, कल्प, यौवेयक, अनुत्तर, और सिद्धि इनके अवकाशान्तर धर्मास्तिका. यके संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं और बाकी सब पृथिवी घनोदधि वगैरह धर्मास्तिकाय के असंख्यातवें भाग का ही स्पर्श करते हैं । सू०५॥ मा समुद्रो, ( एवं सोहम्मे कप्पे जाव इसीपभारा पुढी) सौधर्म ४५थी લઈને ઈષ...ભારા પૃથ્વી પર્યન્તના એ બધા પદાર્થો ધર્માસ્તિકાયના કેટલા भागना (फुसइ) ५५श रे छ ? उत्तर-(ते सव्वेऽवि असंखेजइमाग फुसंति) तसा , घालितायना मसभ्यातमा लागनी २५ छ, (सेसा पडिसेहियव्या) सध्यातमा ભાગને, કે સંખ્યાતભાગોને, કે અસંખ્યાત ભાગને, કે સમસ્ત ધર્માસ્તિआयनो २५श २ नथी (एवं अहमत्थिकाए एवं लोगागासे वि) अधीસ્તિકાય અને કાકાશના વિષયમાં પણ એજ પ્રમાણે સમજવું. ___ था-" पुढबोदहीघण-तणूकप्पागेवेज्जणुत्तरा सिद्धिी, संखेज्जइभागं अंतरेसु सेसा असंखेज्जा" पृथिवी, धि, धनवात, तनुवात, ४६५, अवेयी, અનુત્તર વિમાને અને સિદ્ધિના અવકાશાન્તરે ધમસ્તિકાયના સંખ્યામાં ભાગને સ્પર્શ કરે છે, અને બાકીના પૃથિવી, ઘોદધિ વગેરે ધર્માસ્તિકાયના અસંખ્યાતમાં ભાગનો સ્પર્શ કરે છે સૂ, ૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy