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भगवती सूत्रे
धिदर्शनपर्यवाणाम् ' केवलदंसणपज्जवाणं' केवलदर्शनपर्यवाणम् 'उपभोग गच्छ ' उपयोगं गच्छति, उपयोगलक्षणजीवभावः उत्थानादौ आत्मभावेन वर्त्त - मान इति वक्तव्यम् । ननु यदि उत्थानादि आत्मपरिणामे वर्त्तमानो जीव आभिनिवोधिकज्ञानादिस्वरूपं प्राप्नोति तत् किमेतावतैव जीवभावं चैतन्य मुपदर्शयतीति वक्तव्यं स्यादित्याशङ्कायामाह - उपयोग ' इत्यादि. ' उपयोग
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के (ओहिदंसणपज्जवाणं ) अवधिदर्शन की अनन्तपर्यायों के ( केवल दंसणपज्जवाणं ) केवलदर्शन की अनन्तपर्यायों के ( उबओगं गच्छ ) उपयोग को पाता है । इस कथन का भाव इस प्रकार से समझना चा हिये कि सिद्धान्त में उपयोग मूलतः दो प्रकार का कहा गया है १ दर्शनोपयोग और दूसरा ज्ञानोपयोग । ( उपयोगो लक्षणम् ) के अनुसार जीव का स्वरूप उपयोग है। चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के भेदसे दर्शनोपयोग चार प्रकार का होता है, और मतिज्ञान श्रुतज्ञान अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान के भेद से तथा मति अज्ञान, श्रुताज्ञान और विभंगज्ञान इनतीन अज्ञानों के भेद से ज्ञानोपयोग आठ प्रकार का होता है उपयोग जीव में ही पाया जाता है, अजीव में नहीं । अतः जब जीच उत्थान आदि क्रियाओं वाला होता है तब वह इन उपयोगों में से कोई न कोई उपयोग वाला रहता है ।
शंका- केवल दर्शन और केलज्ञान ये उपयोग तो अर्हत केवली एवं
(ओहिदंसण पज्जवाण ) अवधि - दर्शननी अनंत पर्यायाना मने ( केवलदंसणपजवाण ) पण दर्शननी अनंत पर्यायाना ( उवओग गच्छइ ) उपयोग प्राप्त કરે છે. આ કથનના ભાવાર્થ આ પ્રમાણે સમજાવી શકાય-સિદ્ધાંતમાં ઉંચાગના मुख्य थे अार ४ह्या छे- (१) दर्शनोपयोग (२) ज्ञानोपयोग (उपयोगो लक्षणम् ) જીવનું લક્ષણ ઉપયાગ છે. ચક્ષુદન, અચક્ષુન્દેન અવધિદર્શન અને કેવલ દનના ભેદથી દશનાપયાગના ચાર પ્રકાર છે. અને જ્ઞાનાપયેાગના નીચે प्रभाये साठ लेह छे- ( १ ) भतिज्ञान, ( २ ) श्रुतज्ञान, ( 3 ) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्यवज्ञान ( 4 ) ठेवल ज्ञान, ( १ ) भति अज्ञान ( ७ ) श्रुत અજ્ઞાન, અને ( ૮ ) વિભ‘ગજ્ઞાન ઉપયોગનું લક્ષણ જીવમાં જ હાય છેઅછવમાં હોતુ નથી. તેથી જ્યારે જીવ ઉત્થાનાદિ ક્રિયાઓ વાળા હાય છે ત્યારે તે ઉપરાક્ત ઉપયાગામાંથી કાઈ ને કાઈ ઉપયોગવાળા રહે છે,
શંકા-કેવલર્દેશન અને કેવલજ્ઞાન, એ એ ઉપયાગ તા અર્હત કેવલી અને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨