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प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०१० सू० १ अस्तिकायस्वरूपनिरूपणम्
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घोsरसोऽस्पर्शः गुणतो गमनगुणः, अधर्मास्तिकायोऽपि एवमेव. नवर, गुणतः स्थानगुणः आकाशास्तिकायोऽपि एवमेव, नवरम् - क्षेत्रतः खलु आकाशास्तिकायो लोकालोकप्रमाणमात्रः अनन्तश्चैव यावत् गुणतोऽवगाहनागुणः । जीवास्तिकायः खलु भदन्त कतिवर्णः कतिगन्धः कतिरसः कतिस्पर्श: ? गौतम ! अवर्णो लोकप्रमाण है । ( कालओ न कयाइ नासी, न कयाइ नत्थि, जाव णिच्चे ) कालकी अपेक्षा धर्मास्तिकाय पूर्वकाल में किसी भी समय में नहीं था ऐसा भी नहीं है, वर्तमान काल में किसी भी समय नहीं है ऐसा भी नहीं है और भविष्यत् काल में किसी भी समय में नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है, क्यों कि यावत् वह नित्य है ( भावओ अवण्णे अगंधे, अरसे, अफासे) भावकी अपेक्षा धर्मास्किायवर्ण रहित, गंधरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है। (गुणओ गमणगुणे ) गुण की अपेक्षा धर्मास्तिकाय गमनमें सहायक गुणवाला है। (अहम्मत्थिकाए वि एवं वेब) अधर्मास्तिकाय भी ऐसा ही है (नवरं गुणओ ठाणगुणे) परन्तु अधर्मास्तिकाय गुण की अपेक्षा स्थिति गुण वाला है । ( आगासत्थिकाए वि एवं चेव ) आकाशास्तिकाय भी ऐसा ही है । ( नवरं खेत्तओ णं आगास = त्विकाए लोया लोयप्यमाणमेते ) परन्तु आकाशास्तिकाय क्षेत्र की अपेक्षा लोकालोक प्रमाण है। (अणंते चेव) अनन्त है । ( जाव गुणओ अवगाहणागुणे) यावत् आकाशास्तिकाय गुण की अपेक्षा अवगाहन णमेत) क्षेत्रनी अपेक्षा धर्मास्तिप्रय बोर्ड प्रमाणु छे. ( कालओ न कयाइ नस्थि, जाव णिच्चे ) अजनी अपेक्षाओ धर्मास्तिआय भूतागमां अ સમયે ન હતું એવું પણ નથી, વર્તમાન કાળમા કેઈ સમયે નથી એવું પશુ શકય નથી, અને ભત્રિષ્યકાળમાં પણ કોઈ પણ સમયે તેનું અસ્તિત્ફ નહીં होय मेधुं पशु नथी, अरशु है ते नित्य छे, ( भावओ अवष्णे अंगंषे, अस्से, अफासे ) लावनी अपेक्षाये धर्मास्तिप्रय वर्षा रहित, गंधरहित, रस रहित भने स्यर्श रहित छे. ( गुणओ गमणगुणे ) गुणुनी अपेक्षा धर्मास्तिाय गमन शुशु वाजु छे. ( अहम्मत्थिकाए वि एवं चेव ) अधर्भा स्तिभय यागु खेवु ४ छे. (नवर गुणओ ठाणगुणे ) परंतु अधर्मास्तिाय गुगुनी अपेक्षा स्थिति गुप्यु वाजु छे. ( आगासत्थिकाए वि एवं चेव ) आअशास्तिठाय यागु मेवुं ४ छे. ( नवरं खेत्तओ णं अगासत्थिकाए लोयाछोयमाणमेते) क्षेत्रनी अपेक्षा आअशास्तिआय बोडअलोऽप्रभाणु छे, (अप्प वे चेव ) अनंत छे, ( जाव गुणओ अवगाहणा गुणे ) भने गुणुनी अपेक्षा व्यव શાહન ગુણવાળુ છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨